बुधवार, 20 अप्रैल 2016

शब्दों की मार


देखो यह शब्दों की मार ,
शब्दों से होते शब्दों पर वार ।
उलट पलट कर, पलट उलट कर ,
होते नित नये तीर तैयार ।
 व्यंग धनुष पर, भाषा के तरकश से ,
 यह तीर करें , नित नये प्रहार ।
 कभी शब्द बाण चलें ऐसे ,
 मधुवन से पुष्प झड़े जैसे ।
 कभी शब्द बाण बने ऐसे ,
 सावन की बदली बरसे जैसे ।
 कभी काम बाण बन मन हरते ऐसे,
 प्रणय मिलन की बेला आई जैसे ।
कभी शब्द बाण ने किया प्रहार,
 मन कांप गया, सागर में चढ़ा ज्वार ।
 कभी व्यंग धनुष ने संधान किया,
 तीक्ष्ण शब्द को कमान किया ।
छोड़ दिया फिर साध लक्ष्य को,
कर अग्नि वर्षा,मन घायल करने को।
 यह शब्दों की माया नगरी ,
 कभी बिखरी कभी संवरी ।
 शब्दों में ही बसती दुनियां ,
हमरी तुम्हरी, तुम्हरी हमरी ।
     ....विवेक....

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...