शनिवार, 8 अप्रैल 2017

प्रकट राम तब होते है


कन्टक पथ पर चलना होता है ।
सत्य साथ के होना होता है ।
       धर धैर्य हृदय में सह कष्टों को ,
       हृदय प्रकट राम तब होता है ।
  विजय त्रिलोकपति पर पाकर
 राज्य विभीषण को देना होता है
       सुनकर एक पुकार किसी की
       सीता को भी खोना होता है
  वचन भंग न हो जाए पिता के
 वन वासी तब होना होता है
       खाकर जूठे बेर शबरी के
     शत्रु को भी पूज्य कहना होता है
 जीता जब स्वयं ने स्वयं को
 हृदय प्रकट राम तब होता है
   ..... विवेक ....

कहती है कलम नया

क्या कुछ कहती है कलम नया ।
खुशियों के लम्हे या हो ग़म नया ।
 डुबा कर कलम दिल की ,
 जज्वातों की स्याही से ,
 बस कर दो सब वयां ।
 रंग चढ़ें बिरह वेदना के ,
  मधुर मिलन का रंग चढ़ा ।
  जज्बातों की स्याही से ,
  सब कर दो सब वयां ।
  हों आशाएं अभिलाषाएँ ,
  या हो घोर निराशाएँ ,
  सब को देदो रंग जरा ।
 जज्बातों की स्याही से ,
 बस कर दो सब वयां ।
  ..... विवेक दुबे "निश्चल"@ ...


कल


खो जाता है आज ।
जब तक आता कल ।।
       आज मन विकल हर पल ।
      आता अविचलित अटल कल ।।
 जूझता आज समय से ।
 निश्चित होता हर कल ।।
             थमता नही समय कभी ।
             चलता वो पल प्रतिपल ।।
 नियत समय आता कल ।
 यही नियति सत्य अटल ।।
            .... विवेक .....

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...