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मिरी याद में जो रवानी मिलेगी।
उसी आह को वो कहानी मिलेगी ।
मिली रूह जो ख़ाक के उन बुतों से ,
जिंदगी जिस्मों को दिवानी मिलेगी ।
मुझे भी मिला है जिक्र का सिला यूँ ,
नज़्मों में मिरि भी कहानी मिलेगी ।
जहाँ राह राही मुसलसल चलेगा ,
जमीं पे कही तो निशानी मिलेगी ।
बहेगा तु हालात के दर्या में ही ,
नही मौज सारी सुहानी मिलेगी ।
सजाता रहा मैं जिसे ख़्वाब में ही ,
उम्र वो किताबे पुरानी मिलेगी ।
कहेगा जिसे तू निगाहे जुबानी,
"निश्चल" वो नज़्र भी सयानी मिलेगी ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 6(146)
अंतिम शेर फिर से कहें,बेमानी है
कहेगा जिसे तू निगाहे सुहानी ,
कहेगा जिसे तू निगाहे ख़ास ही,
"निश्चल" वो नज़्र भी सयानी मिलेगी ।