गुरुवार, 26 अक्तूबर 2023

मिरी याद में जो रवानी मिलेगी।

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 मिरी याद में जो रवानी मिलेगी।

  उसी आह को वो कहानी मिलेगी ।

 

 मिली रूह जो ख़ाक के उन बुतों से ,

 जिंदगी जिस्मों को दिवानी मिलेगी ।


मुझे भी मिला है जिक्र का सिला यूँ ,

नज़्मों में मिरि भी कहानी मिलेगी ।


  जहाँ राह राही मुसलसल चलेगा ,

  जमीं पे कही तो निशानी मिलेगी ।


  बहेगा तु हालात के दर्या में ही ,

   नही मौज सारी सुहानी मिलेगी ।


  सजाता रहा मैं जिसे ख़्वाब में ही ,

   उम्र वो किताबे पुरानी मिलेगी ।


   कहेगा जिसे तू निगाहे जुबानी,

  "निश्चल" वो नज़्र भी सयानी मिलेगी ।

    

.... विवेक दुबे"निश्चल"@....

डायरी 6(146)


अंतिम शेर फिर से कहें,बेमानी है



कहेगा जिसे तू निगाहे सुहानी ,


  कहेगा जिसे तू निगाहे ख़ास ही,

  "निश्चल" वो नज़्र भी सयानी मिलेगी ।


कहीं दरिया मुरादों के , कहीं साहिल नहीं मिलते

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कहीं दरिया मुरादों के , कहीं साहिल नहीं मिलते 

कभी छूटे किनारों को , कोई हाँसिल नही मिलते ,


चला हूँ खोजता राहे ज़िंदगी को मुसलसल ही ,

किये जो क़त्ल मिरे अरमान, वो क़ातिल नही मिलते ।


जलाये सामने कोई मिरे शम्मा क्युं महफ़िल की ,

लफ्ज़ अल्फ़ाज महफ़िल में, बज़्म ग़ाफ़िल नही मिलते ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@....

डायरी6(145)

अँधेरो में बिखरी उजाली रही है

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अँधेरो में बिखरी उजाली रही है ।

चला हूँ नज़र राह आती रही है ।


दिखाते रहे हाल हालात को भी ,

ज़ख्म ये पुराने निशानी रही है ।


मिला है नसीबा मुक़द्दर जहाँ भी  ,

जिंदगी तक़दीर से मिलाती रही है ।


मिलाते रहे ज़िस्म-ओ-जां निगाहें ,

यहाँ रूह भी तो रूहानी रही है ।


तरसता है वो चाँद भी चाँदनी को ,

जुदा चाँदनी भी दिवानी  रही है ।


कटी है निग़ाहों में जो रात सारी ,

वही रात ही तो सुहानी रही है ।


.... विवेक दुबे"निश्चल"@...

डायरी 6(143)

मिला है मुकद्दर मुक़द्दर से भी कभी ,

25/10/23


रोक लिया इन अश्कों को ,

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रोक लिया इन अश्कों को ,

उन मुस्कानों की ही ख़ातिर ।


हार चला ख़ुद को ख़ुद से ही ,

उन अरमानों की ही ख़ातिर ।


होकर ग़ुम अपने उजियारों में ,

उनकी पहचानों की ख़ातिर ।


 शान्त भाब स्तब्ध निगाहें ,

 अपने इमानों की ख़ातिर ।


.... विवेक दुबे"निश्चल"@...

डायरी 6(142)

Blog post9/6/19

जिंदगी तलाश सी रह गई

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जिंदगी तलाश सी रह गई ।

उम्र यूँ हताश सी रह गई ।


न हो सके तर लब  तमन्नाओं से,

 एक अधूरी प्यास सी रह गई ।


खोजता चला दर-ब-दर ,

ठोकर ही पास सी रह गई ।


सींचता चला गुलशन-ए-जिंदगी ,

खुशबू-ए-चमन आश सी राह गई ।


लपेट कर चंद अरमान की चादर ,

चाहत-ए-हयात ख़ास सी रह गई ।


.... विवेक दुबे"निश्चल"@..

डायरी6(141)

सँभलते नहीं हैं हालात

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सँभाले से सँभलते नहीं हैं हालात कुछ ।

बदलते से रहे रात हसीं ख़्यालात कुछ ।


होता गया बयां ,हाल सूरत-ऐ-हाल से ,

होते रहे उज़ागर, उम्र के असरात कुछ ।


बह गया दर्या ,  वक़्त का ही वक़्त से ,

करते रहे किनारे, ज़ज्ब मुलाक़ात कुछ ।


 थम गया दरियाब भी, चलते चलते ,

 ज़ज्ब कर , उम्र के मसलात कुछ ।


"निश्चल" रह गये ख़ामोश, जो किनारे ,

झरते रहे निग़ाहों से ,  मलालात कुछ ।


.... विवेक दुबे"निश्चल"@....


डायरी 6(140)

Blog post 25/10/23

परिपथ पर

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परिपथ पर जो , बढ़ता चलता है ।

दिन रात वही तो, गढ़ता चलता है ।


घूम रही धरती, अपनी ही धूरी पर ,

परिपथ साथ सदा, मढ़ता चलता है ।


चलती ही है यह, नियति निरंतर ,

जीवन पाठ यही, पढ़ता चलता है ।


जीव चले शृंगारित, ज़ीवन पथ पर ,

नित रतन नये , जड़ता चलता है ।


एक स्वर्णिम आभा, क्षितिज तले ,

साँझ तले जीव, बिछड़ता चलता है ।


पूर्ण हुआ पथ , जब चलते चलते ,

बनता न तब कुछ ,बिगड़ता चलता है ।


"निश्चल"अटल अचल है दिनकर तो , 

पर सचल सदा जड़ता करता चलता है ।


.... विवेक दुबे"निश्चल"@...

डायरी 6(139)

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...