मंगलवार, 25 अगस्त 2015

दर्द सीप का



 सीप ने जब मोती जाना होगा
 दर्द बे इन्तेहाँ सहा होगा
 देख मोती की चमक
 सीप का दर्द कुछ कम हुआ होगा
 क्या मोती ने सीप के दर्द को समझा होगा
 मोती तो अंगुली में नगीना बन जड़ा होगा
       .....विवेक.....

यूँ मात खा रहे हम


यहीं हम मात खा रहे है
 अपनों से ही घात खा रहे है
 ख़ंजर एक हाथ में जिनके
 उन्हें गले लगा रहे है
 करते जो झुक कर प्रणाम
 उन पर हम हाथ उठा रहे है
 हम क्यों अपना इतिहास
 भुलाते जा रहे है
        .....विवेक.....

रविवार, 23 अगस्त 2015

अंश माता पिता


माँ सरस्वती की कृपा से,
मुझ में पिता का बो अंश आया है,
मैने अपने आप में पिता जैसा
रचनाकार भी पाया है ,
मुझ पर "नेहदूत" का ,नेह बरसता
माँ सरस्वती की कृपा
मिलती बारम्बार
यही मेरा "सौभाग्य "

माँ मनोरमा की
मनोरम कृपा भी ,
साथ साथ आई है
जिसके कारण सारी दुनियां
बस भाई ही भाई है ,

है माँ बस इतना करना उपकार
मिले जन्म जन्म तक
यही माँ, यही पिता ,
बारम्बार हर बार, बार बार,
हो माँ तेरा उपकार,
.....विवेक...

पिता ...


मनचाहा बरदान मांग लो ।
अनचाहा अभय दान माँग लो ।।
उसके होंठो की मुस्कान माँग लो ।
जीवन का संग्राम माँग लो ।।
सारा पौरुष श्रृंगार माँग लो ।
साँसों से प्राण माँग लो ।।
बस हँसते हँसते हाँ ।
कभी न निकले ना ।।
कुछ ऐसा होता है पिता ,
क्या हम हो सकेंगे कभी कहि ,
अपने इस ईस्वर के आस पास ,,
तब शायद पिता को समझ सकें कुछ हम भी ,,,
...विवेक.....

मेरे पिता ....


बरगद से बिशाल पिता।
हर मुश्क़िल की ढाल पिता ।।
ख़ुश है हर हाल पिता ।
कहे न दिल का हाल पिता ।।
हर मुश्क़िल का संबल पिता ।
निर्बल का आत्मबल पिता ।।
कभी धूप कभी छांब पिता ।
मुश्किल में न खिज़ा पिता ।।
हर मुश्किल से जीता ।
पिता हर दुःख पीता पिता ।।
हलाहल कंठ थामता पिता ।
शिवः सामान नीलकंठ पिता ।।
बस खुशियाँ बाँटता पिता ।
तुम शुभांकर "नेहदूत" पिता ।।
तुम्हे शुभकामनाये, मैं क्या दूँ पिता ।
तेरे चरणों में रहे, सदा मेरा ध्यान पिता ।।
......विवेक...

नीव का पत्थर ....


बने महल और अटारे
मंदिर मस्जिद और गुरुद्वारे
कही ताज महल खड़ा
कही मीनार सर उठा रही
इनमे लगे हर पत्थर को देख
दुनिया दांतों तले अंगुली दवा रही
देख देख करती वाह वाह
क्या कला है ..क्या कोशल है ..
पर .......
देखा न कभी सोचा किसी ने
वो नीब के पत्थर कैसे होंगे
क्या गुजर रही होगी उन पर
किस हाल में होंगे .....
जो दफन हो गए
सदा सदा के लिए
इन उकेरे गए
नक्काशी दार
पत्थरौ की खातिर
आज जिन्हें देख दुनिया
सजदे में झुक जाती है
नीब के पत्थर उस
पत्थर को भुला कर . ..
........... विवेक....

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...