शुक्रवार, 16 मार्च 2018

न कर नादानी

तू न कर और नादानी ।
 ज़ीवन की मोड़ कहानी ।
 लिख जा हर्फ़ सुनहरे से ,
 तू न स्याह छोड़ निशानी ।
 .... विवेक दुबे"निश्चल"@..

चाह

मायूस सुबह ख़ामोश रात थी ।
 अश्क़ से भरी  हर आह थी ।
 थे दामन में सितारे तो बहुत,
 चाँद की मगर मुझे चाह थी ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...

गुरुवार, 15 मार्च 2018

ज़ीवन के वार से

खड़ा बही अपराध भाव से ।
चलता जो निःस्वार्थ भाव से ।
 सी कर चादर को अपनी ,
 ओढ़ा पुरुस्कार भाव से ।

 खड़ा बही अपराध भाव से ।
 चलता जो निःस्वर्थ भाव से ।
   जो खुशियाँ हाथों में उसके ,
  वो बाँट चलता बड़े प्यार से।

 खड़ा बही अपराध भाव से ।
 चलता जो निःस्वर्थ भाव से ।
  सहज सका न अपनी ख़ातिर
 जो चलता उपकार भाव से ।

  खड़ा बही अपराध भाव से ।
 चलता जो निःस्वर्थ भाव से ।
 अजीव पहेली है जीवन की ,
 हारा ज़ीवन ज़ीवन के वार से ।
 .... विवेक दुबे"निश्चल"@

बुधवार, 14 मार्च 2018

रूप नगर से आया चलकर

रूप नगर से आया चलकर ,
 जाम नगर बस जाने को ।
 रिंद सरीखा बनकर वो ,
 साक़ी से नैन लड़ाने को ।

 मचल रही है कव्य पिपासा,
 शब्द शब्द पी जाने को ।
 भावों के इन प्यालों में ,
 अर्थ जाम भर लाने को ।

पीकर सकीं के हाथों से ,
अपनी प्यास बुझाने को ।
 तरकर कंठ फिर अपना ,
 मदहोश रिंद हो जाने को ।

 पीता है वो बस पीता है ,
 काव्य सँग जी जाने को ।
 सँग चली साक़ी उसके ,
 काव्य जाम पिलाने को ।

 आया वो इस मैख़ाने में ,
  ख़ाक यहीं हो जाने को ।
  रूप नगर से आया चलकर ,
   जाम नगर बस जाने को ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...


बीज डालता वो ।

बीज डालता वो आशा से,
 सींच परिश्रम से धरती को ।
नव सृजन का अंकुर फूटे ,
 तरु पल्लभ बन जाने को ।

  जोत रहा वो तप्त धरा को ।
  धरती से अन्न उगाने को ।
  सिंचित कर स्वेद कणों से ,
   फिर मातृ सुख दिलाने को ।

  वर्षा ग्रीष्म और जाड़े भी ,
 बाध्य नही रुक जाने को ।
 चलता है अथक भाव से ,
 धरा श्रृंगार सजाने को ।

नव सृजन का अंकुर फूटे ,
 तरु पल्लभ बन जाने को ।

      ... विवेक दुबे"निश्चल"@...

सोमवार, 12 मार्च 2018

लिखता मिटता सा अक्षर

खामोशी कहतीं अक्सर ।
  लिखता मिटता सा अक्षर ।

       सजकर रात सुहाने तारों से  ,
       चँदा आँख चुराता अक्सर । 

 देख रहा वो आँख मिचौली ,
 दूर छिपा बैठा नभ दिनकर ।

        चाहत में झिलमिल तारो की,
        आ जाता वो अक्सर ।

 दिन के उजियारों में भी ,
 चाँद नजर आता अक़्सर ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@....

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...