प्राप्त सब सच्चे प्रयास से ।
उन्नति है मेहनत के हाथ में ।
हारते हैं वो जो चलते नहीं,
मंज़िल आती चलने के बाद में।
न हारना अपना हौंसला तू कभी,
चातक, जीता है दो बूंद की आस में।
आती है जीतकर किरण भोर की ,
हराकर अंधेरों को रात के बाद में ।
.....
क्या जाने गुलाब खुशबू की तासीर ।
खिलता आया है जो औरों के लिए।
साहिल को ही सागर हाँसिल है ।
जो सहता सागर की हलचल है
....
उम्र के इस पड़ाव पर।
इश्क़ के अलाव पर।
सिकतीं यादें प्यार की,
अहसास के कड़ाव पर ।
....
आशा के सागर से दो बूंद चुरा लाओ ।
आओ तुम भी साहिल पर आ जाओ ।
लकीरें मुक्कदर की बदलती नहीं।
फिर भी लोग तक़दीर गड़ा करते हैं ।
....
सिमट रही कला काव्य की ,
विषय नही व्यापक कोई ।
डूबे सब अपने आप में,
देश सुध नही पावत कोई ।
..
जिंदगी को तरसते सब
वफ़ा को तड़फते सब
चहरे छिपाए सब अपने
नक़ाब में घूमते आज सब
...
निश्चल एक आस है ।
आस ही प्रभात है ।
चलते रहें यूँ ही हम,
जीवन एक प्रयास है ।
...
उसकी वेदना बड़ी भारी थी ।
जिसकी भूख एक लाचारी थी ।
बीनता था जूठन वो बचपन ,
और निगाहें उसकी आभारी थीं ।
आये थे जहाँ साँझ को,
है वहाँ से अब लौटना ।
सफ़र न था उम्र भर का ,
तू न जरा यह सोचना ।
....
अर्चन बंदन वो गठबंधन शब्दों में।
प्रणय मिलन वो शब्दों का शब्दों में ।
भावों के धूंघट में नव दुल्हन से ,
हर काव्य रचा एक नव चिंतन में ।
शब्द बिके अब सत्ता के गलियारों से ।
कैसे ढूँढे अब सूरज को उजियारों में ।
कलम दरवान बनी दरवारों की ,
चलती है सिक्कों की टंकारों में ,
हिस्से हैं जो जगते इतिहासों के ,
मिलें नही अब सोती साँसों में ।
सिद्ध साधना वो आवाज़ों की ,
सुफल नही अब प्रयासों में ।
शब्द बिके अब सत्ता के गलियारों में ।
कैसे ढूँढे अब सूरज को उजियारों में ।
----- ---- -----
जो हिस्सा है इतिहास का ।
नही था वो कल आज सा ।
साधना थी वो शब्दों की,
नही था वो प्रयास आज सा ।
... *विवेक दुबे "निश्चल''*©..
...
खोया अपने आप में
उलझा कुछ हालात में
मिज़ाज़ कुछ नरम गरम
खोजता मर्ज-ऐ-इलाज़ मैं
....
ठीक नही अब कुछ
बिगड़ चला अब कुछ
जीता था लड़कर जो
थक हार चला अब कुछ
...
लिखता था जो हालात को ।
कहता था जो ज़ज्बात को।
बदलता गया समय सँग सब ,
बदल उसने भी अपने आप को ।
.....
मन विश्वास हो स्नेहिल आस हो ।
तपती रेत भी शीतल आभास हो ।
जीत लें कदम दुनियाँ को तब,
हृदय मन्दिर प्रभु कृपा प्रसाद हो ।
....
जिंदगी मिली जरा जरा ।
जी लें हम जरा जरा ।
बाँट लें ग़म जरा जरा।
बाँट दें ख़ुशी जरा जरा ।
.... "निश्चल" *विवेक*©...
उन्नति है मेहनत के हाथ में ।
हारते हैं वो जो चलते नहीं,
मंज़िल आती चलने के बाद में।
न हारना अपना हौंसला तू कभी,
चातक, जीता है दो बूंद की आस में।
आती है जीतकर किरण भोर की ,
हराकर अंधेरों को रात के बाद में ।
.....
क्या जाने गुलाब खुशबू की तासीर ।
खिलता आया है जो औरों के लिए।
साहिल को ही सागर हाँसिल है ।
जो सहता सागर की हलचल है
....
उम्र के इस पड़ाव पर।
इश्क़ के अलाव पर।
सिकतीं यादें प्यार की,
अहसास के कड़ाव पर ।
....
आशा के सागर से दो बूंद चुरा लाओ ।
आओ तुम भी साहिल पर आ जाओ ।
लकीरें मुक्कदर की बदलती नहीं।
फिर भी लोग तक़दीर गड़ा करते हैं ।
....
सिमट रही कला काव्य की ,
विषय नही व्यापक कोई ।
डूबे सब अपने आप में,
देश सुध नही पावत कोई ।
..
जिंदगी को तरसते सब
वफ़ा को तड़फते सब
चहरे छिपाए सब अपने
नक़ाब में घूमते आज सब
...
निश्चल एक आस है ।
आस ही प्रभात है ।
चलते रहें यूँ ही हम,
जीवन एक प्रयास है ।
...
उसकी वेदना बड़ी भारी थी ।
जिसकी भूख एक लाचारी थी ।
बीनता था जूठन वो बचपन ,
और निगाहें उसकी आभारी थीं ।
आये थे जहाँ साँझ को,
है वहाँ से अब लौटना ।
सफ़र न था उम्र भर का ,
तू न जरा यह सोचना ।
....
अर्चन बंदन वो गठबंधन शब्दों में।
प्रणय मिलन वो शब्दों का शब्दों में ।
भावों के धूंघट में नव दुल्हन से ,
हर काव्य रचा एक नव चिंतन में ।
शब्द बिके अब सत्ता के गलियारों से ।
कैसे ढूँढे अब सूरज को उजियारों में ।
कलम दरवान बनी दरवारों की ,
चलती है सिक्कों की टंकारों में ,
हिस्से हैं जो जगते इतिहासों के ,
मिलें नही अब सोती साँसों में ।
सिद्ध साधना वो आवाज़ों की ,
सुफल नही अब प्रयासों में ।
शब्द बिके अब सत्ता के गलियारों में ।
कैसे ढूँढे अब सूरज को उजियारों में ।
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जो हिस्सा है इतिहास का ।
नही था वो कल आज सा ।
साधना थी वो शब्दों की,
नही था वो प्रयास आज सा ।
... *विवेक दुबे "निश्चल''*©..
...
खोया अपने आप में
उलझा कुछ हालात में
मिज़ाज़ कुछ नरम गरम
खोजता मर्ज-ऐ-इलाज़ मैं
....
ठीक नही अब कुछ
बिगड़ चला अब कुछ
जीता था लड़कर जो
थक हार चला अब कुछ
...
लिखता था जो हालात को ।
कहता था जो ज़ज्बात को।
बदलता गया समय सँग सब ,
बदल उसने भी अपने आप को ।
.....
मन विश्वास हो स्नेहिल आस हो ।
तपती रेत भी शीतल आभास हो ।
जीत लें कदम दुनियाँ को तब,
हृदय मन्दिर प्रभु कृपा प्रसाद हो ।
....
जिंदगी मिली जरा जरा ।
जी लें हम जरा जरा ।
बाँट लें ग़म जरा जरा।
बाँट दें ख़ुशी जरा जरा ।
.... "निश्चल" *विवेक*©...