गुरुवार, 12 अक्तूबर 2023

हुनर

  



तु हुनर बाँटना अपने ही तरीक़े से ,
शागिर्द ही उस्ताद हुआ करते है ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@....

हुनर वो नही जो लेना जाने ।
हुनर वो है जो देना जाने ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@..

हौंसलो से हुनर,  मुक़ाम पता है ।
मुसाफ़िर अकेला , थक जाता है ।
...विवेक दुबे"निश्चल"@..

तहज़ीब ही हुनर-ए-तमीज़ है ।
यूँ तो इंसान बहुत बदतमीज है ।
...विवेक दुबे"निश्चल"@..

मैं कौन हूँ जमाना तय क्या करेगा ।
मेरा हुनर ही तो मेरा आईना होगा ।
...विवेक दुबे"निश्चल"@..

वक़्त बड़ा हुनरदार है ।
सबसे बड़ा किरदार है। 
करता है हिसाब सबका,
रखता नही कभी उधार है ।
...."निश्चल"@..

एक उम्र दराज , नजर रखता हूँ ।
दिल जोड़ने का , हुनर रखता हूँ ।
मैं न हाकिम हूँ , न हक़ीम कोई  ,
दिल से दिल का,असर रखता हूँ ।
......विवेक दुबे"निश्चल"@..

मैं आईने सा हुनर, पा, न पाया ।
जो सामने आया, दिखा, न पाया ।
मैं छुपाता रहा, अक़्स, दुनियाँ के ,
मैं ख़ुद को ख़ुद में, छिपा, न पाया ।
....निश्चल"@.

एक राह मुसलसल तू चला चल ।
राह की ठोकरों से तू मिला चल ।
न कर गुमान हुनर के गुरुर पर ,
तू होंसले रास्तों को दिला चल ।
माना नही मंजिल नसीब में उसके ,
इरादों को तू उसके न हिला चल ।
...."निश्चल"@..

वो इल्म क्यूँ भार सा रहा ।
वो हुनर से ही हारता रहा । 
क़तरे थे आब के आँखों मे ,
वो खमोश नज़्र निहारता रहा ।
...."निश्चल"@...


यूँ हुनर से हुनर पाता गया ।
  जो वो मेरे पास आता गया ।
भूलता रहा रंजिशें दुनियाँ की ,
वो इश्क़ का हुनर सिखाता रहा ।

दो कदम पीछे हुनर से हटाता रहा ।
यूँ हर ख़्वाब टूटने से बचाता रहा  । 
न जीता कभी जंग में जिंदगी की ,
यूँ न हार कर मैं ज़श्न मनाता रहा ।
...."निश्चल"@...


समझ सका न मैं ज़िंदगी तेरी चाल को ।
हुनर नही मुझ में देने अपनी मिशाल को ।
समझ ही नही रही जब मुझ को मेरी ही ,
समझेगा क्या जमाना तब मुझ बेहाल को ।
...."निश्चल"@...


लिख न सका जवाब, 
   उन सवालों के सामने ।
गुम होते गए हालात , 
    जो ख़यालों के सामने ।

लेकर चला तौफ़ीक़-ए-हुनर , 
      अपने ईमान से ,
होता ही गया लाचार ,
     कुछ मिसालों के सामने ।

गढ़ता ही रहा जो उजाले,
         अंधेरों से लड़कर ,
चोंधियाती रहीं वो निगाहें ,
      उन उजालों के सामने ।

चलता ही चला वक़्त सा, 
       वक़्त के हालात से ,
ठहर न सका अपनी ही,
           निहालों के सामने ।

...विवेक दुबे"निश्चल"@...

तौफ़ीक़/
शक्ति, सामर्थ्य/हिम्मत, हौसला/दैवकृपा।

निहाल/सन्तुष्ट/सफलताएं
..... विवेक दुबे"निश्चल"@..


बहुत कुछ कहा ,कुछ कह गया ।
हर्फ़ हर्फ़ किताबों से, बह गया ।

पलटता रहा सफ़े जिंदगी के ,
हर हुनर निग़ाहों में रह गया ।

देखता रहा मासूमियत चेहरा ,
और उनवान उम्र ढह गया ।(भूमिका)

लाया ना कोई सच जुबां पर ,
हर ज़ुल्म इंसाफ़ सह गया ।

   कर ना सकी बयां जुबां जिसे ,
"निश्चल" वो जज्बात हर्फ़ कह गया ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@....


चेहरे ही बयां करते है,
               इंसान के हुनर को ।
नजरें ही पढा करतीं हैं ,
               हर एक नज़र को ।
क्यों इल्ज़ाम फिर लगाएँ ,
               इस मासूम से ज़िगर को ।
दिल झेलता है फिर भी,
                   दर्द के हर कहर को ।
चेहरे ही बयां करते हैं ,
                   इंसान के हुनर को  ।
शब्दों ही ,ने उलझाया ,
                 शब्दों के असर को ।
मिलें सब जिस नज़र में ,
                कहाँ ढूंढे उस नज़र को ।
मासूमियत ने देखो ,
               किया ख़त्म , हर असर को।
चेहरे ही बयां करते हैं ,
              इंसान के हुनर को ।
    ....विवेक दुबे"निश्चल"@..


328
थक न तू ,          हार न तू ।
अपने हुनर को बिसार न तू ।

धर होंसले को काँधे अपने ,
होंसला कांधे से उतार न तू ।

तू चाँद है        अम्बर का ।
तू सूरज है नील गगन का ।

तू झोंका है मस्त पवन का ।
तू नीर है सागर के तन का ।

चला चल न रोक ,अपने कदम को ।
मन्ज़िलें बेचैन हैं तेरे आगमन को ।

....विवेक दुबे "निश्चल"@...


चुप रहने का भी ,
हुनर सिखाती आँखे।

                  चुप रह कर भी,
                   सब कह जातीं आँखे।

  शब्द गुंजातीं साँसों में ।
  नज़र आते आँखों में ।

               उठती पलकें ,गिरती पलकें ।
               भींगी पलकें, सूखी पलकें ।

शून्य में कुछ लिखती आँखें।
  भावों को बरसाती आँखें ।

       .....विवेक दुबे"निश्चल"@ ...


BLog post 14/10/23

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...