शनिवार, 9 जनवरी 2021

लाज रखो प्रभु

 कुछ अपने ओहदे बढ़ाने में लगे है ।

कुछ अपने आप को सजाने में लगे है ।


कर गई दीवाना दुनिया मज़लूम को ,

इल्ज़ाम फिर भी दीवाने पे लगे है ।


चमकते गुनाह अंधियारों में भी जिनके ,

वो खुद को बे-गुनाह बताने में लगे है । 


लाज रखो प्रभु तुम "निश्चल" की,

हम तो प्रभु को मनाने में लगे है ।

..... विवेक दुबे"निश्चल"@...

डायरी 7

उम्र के मुक़ाम पर

 उम्र के मुकाम पर ।

चाह के पयाम पर ।

तय किये है रास्ते ,

मंजिलों के दाम पर ।

तिलिस्म जिस्म में भरा ,

रूह के इकराम पर ।

ढल रही है शाम  ,

भोर के नाम पर । 

ले चली है हसरतें ,

ख़्वाब के खय्याम पर ।

 ...विवेक दुबे"निश्चल"@...


इकराम--दान

खय्याम ---तम्बू

दायर 7

हम तो अदने नादान से

 हम तो अदने नादान से ।

गुमनामी की पहचान से ।


आये है एक नज़्म कहने को,

तेरी महफ़िल में मेहमान से ।


चश्म चढ़ाये मोहोब्बत का ,

चाह लिए मिलने इंसान से ।


देता रहा आवाज़ ज़मीर जमीं पे ,

उतरता नही कोई नीचे गुमान से।


खोजती रही चाह चाहतों को ,

हो गई ग़ुम हसरतें अरमान से ।


 दौर है ये दुनियां एक शैतान का ,

 बात कहता है"निश्चल"ईमान से ।


    ..विवेक दुबे"निश्चल"@...

डायरी 7

अश्क़ बहाये न गये ।

 आँखों में भरे अश्क़ बहाये न गये ।

रूठ कर आज अपने मनाये न गये ।


कह गये बात तल्ख़ लहज़े में वो ,

नर्म अल्फ़ाज़ जुवां पे सजाये न गये ।


 उठाते रहे हर नाज़ बड़े सलीक़े से ,

अहसास फ़र्ज़ कभी दिलाये न गये ।


हो गये गैर अपने गैर की ख़ातिर ,

अपने कभी मग़र भुलाये न गये ।


 सह गये हर चोट बड़े अदब से हम ,

ज़ख्म "निश्चल" कभी दिखाये न गये ।

...."निश्चल"@.

डायरी 7

पिता

 779

सुख की छांया सौंप सदा ही,

 जेठ धूप से तपे पिता ।

कंटक पथ सी राहों में ,

नर्म बिछौने से बिछे पिता ।


जी कर अपने ही संतापों में , 

धैर्य सदा ही धरे पिता ।

 टकराकर हर संकट से ,

 संकट सारे ही हरे पिता।


 मेरे एक सुख की ख़ातिर,

 संघर्षों से सजे पिता ।

बांट प्रसाद में सुख अपने,

 सारे सुख तजे पिता ।


सपने जब वो कुछ गढ़ लेते,

 सजल नयन भरे पिता ,

मेरे एक सपने की ख़ातिर ,

अपने सपने तजे पिता ।


सींच रहा अमृत रस ,

कंठ हलाहल भरे पिता ।

सुख की छांया सौंप सदा ही ,

जेठ धूप सा तपे पिता ।


 चाह नही कोई फिर भी,

  चाह न कभी कहे पिता ,

जीता जिनकी ख़ातिर वो,

 पा जाए वो कुछ कहे पिता ।


 "निश्चल" रहकर चलता ,

राहों पर गतिमान पिता ।

तोड़ तोड़कर तारे अम्बर से ,

झोली मेरी भरें पिता ।


.... विवेक दुबे"निश्चल"@..

डायरी 7


अब नही ख़्वाब-ओ-ख़्याल कोई ।

 अब नही रंजिशों से मलाल कोई ।

अब नही  ख़्वाब-ओ-ख़्याल कोई ।

थी जुस्तजू अरमानों से चाहतों की ,

पर मिली नही मुझ सी मिशाल कोई ।

रूठ कर निगाहों में अपनों की ही ,

करता नही कभी भी कमाल कोई ।

जब चलना हो साथ ज़िंदगी के ही ,

तब क्यो कहे जिंदगी को बेहाल कोई ।

 जब न हों मुरादें कुछ पा जाने की  ,

तब "निश्चल"क्यो न रहे निहाल कोई ।

.....विवेक दुबे"निश्चल"@....

डायरी 7

ख्याल को ख़्वाब देता गया

 हर ज़वाब का जबाब देता गया ।

हर ख़्याल को ख्वाब देता गया ।

मैं चाहत-ऐ-जिंदगी की खातिर ,

मैं हसरतों को रुआब देता गया ।

इस जिंदगी के सफर में मुझे ,

हर मोड़ एक दोहराब देता गया ।

चलता रहा मैं मुसलसल राह पे,

रास्ता मगर मुझे ठहराब देता गया।

वो लफ्ज़ थे कुछ तल्ख़ लहजे में,

हर अल्फ़ाज़ मगर लुआब देता गया ।

देखकर आलम बेहयाई का जमाने मे,

"निश्चल"निगाहों को नक़ाब देता गया ।

....विवेक दुबे"निश्चल"@..

वर्ष हर वर्ष बदल जाते हो तुम

 वर्ष , हर वर्ष बदल जाते हो तुम ।

खामोशी से ,निकल जाते हो तुम ,

बदलकर , दुनियाँ को दुनियाँ से ,

ख़ुद ही ख़ुद में ,ढल जाते हो तुम ।

..... विवेक दुबे"निश्चल"@ ....


वर्ष,हर वर्ष बदल जाते हो तुम ।

 ले दे कर,निकल जाते हो तुम ,

बदलकर , दुनियाँ को दुनियाँ से ,

ख़ुद ही ख़ुद में ,ढल जाते हो तुम ।

..... विवेक दुबे"निश्चल"@

हे वर्ष

 हे वर्ष तुझे विदा करूँ कैसे ।

ज़ख्म मिले गहरे भरूँ कैसे ।

घात मिली मानव को मानव से,

मानवता का पाठ पढूं कैसे ।

धू धू करती काया लज़्ज़ा की ,

नारी रक्षा की शपथ पढूं कैसे ।

....विवेक दुबे"निश्चल"@....

Blog post 9/1/21

कहने को साल बदला है

 कहने को तो साल बदला है ।

नही कहीं कोई हाल बदला है।

है सूरज आज भी कल जैसा ,

नही भोर का उजाल बदला है ।

चल रहा है सब कुछ बेसा ही,

न कोई दिल मलाल बदला है ।

 चल रही है परेशां ज़िंदगी सुकूँ से,

नही कही कोई बे-हाल बदला है ।

चलते चलो आज भी सफर पर,

 उम्मीद ने न ये निहाल बदला है ।

आयेगा उजाला स्याह काट कर,

 न "निश्चल" ने ये ख़्याल बदला है ।

     ....विवेक"निश्चल"@..

9/1/21

जय पराजय से परे चले

  जय पराजय से परे चलें । 

  नित आगे पग धरे चलें । 

    एक आस जगे उत्साह मिलें ।

     नव जीवन के आयाम मिलें ।


बिन हारे थके निश्चल चलें। 

नव प्रभात के आँचल तले । 

      पथ प्रशस्त की भोर खिले ।

      उज्वल कल की और चलें ।


अभिलाषाओं के फ़ूल खिले ।

 नव आशाओं के दीप जले ।

         कुंठाओं को हम जीत चले ।

          पुलकित मन नव वर्ष तले ।

  ....विवेक "निश्चल"@...



प्रश्नों के हल करता हूँ

 अपने ही प्रश्नों को हल करता हूँ ।

प्रयास सदा प्रति पल करता हूँ ।


पा जाऊँगा हल जीवन प्रश्नों का,

ख़ुद ही ख़ुद से छल करता हूँ ।


हार नही मानेगा जीव जनम से ,

जीवन का ऐसा फ़ल करता हूँ ।


 स्वर्णिम कल की अभिलाषा में ,

 स्नेहिल नयन सजल करता हूँ ।


काटेगें तम को फिर उजियारे ,

प्रयासों को उज्ज्वल करता हूँ ।


 तरल रहे जीवन नीर नदी सा ,

जीवन को बहता जल करता हूँ ।


 ठहराव नही हो कोई जीवन में ,

"निश्चल"जीवन को चल करता हूँ ।


अपने ही प्रश्नों को हल करता हूँ ।

प्रयास सदा प्रति पल करता हूँ ।


...विवेक दुबे"निश्चल"@...




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2021






















 

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...