कुछ अपने ओहदे बढ़ाने में लगे है ।
कुछ अपने आप को सजाने में लगे है ।
कर गई दीवाना दुनिया मज़लूम को ,
इल्ज़ाम फिर भी दीवाने पे लगे है ।
चमकते गुनाह अंधियारों में भी जिनके ,
वो खुद को बे-गुनाह बताने में लगे है ।
लाज रखो प्रभु तुम "निश्चल" की,
हम तो प्रभु को मनाने में लगे है ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 7