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आँख आज भी भर आती है ।
माँ जो तू याद आती है ।
देख माँ आज भी तुझे ,
मेरी कितनी फ़िक्र रहती है ।
2 ----------------
देखी है मैंने भी नाराजी माँ की ।
हाँ देखा है गुस्सा भी उसका ।
सब कुछ झूठ कुछ देर के लिए ,
फ़िक्र हुई औलाद की ,
और बोल पड़ी माँ ।
आ चल अब खाना खा ।
3 -------------
धरा सी शांत, गगन सी विशाल ।
माँ तेरी ममता की , न हो सकी पड़ताल ।
जब भी बरसी, शीतल जल बनकर।
स्नेह से किया सरोबर, नित नये अंकुर फूटे ।
खिले खुशियों के फूल अपार ।
देती हो बस देती ही रहती हो ।
नही कभी इंकार ।
तूफ़ानों से हिली नहीं ,
सैलाबों से डिगी नहीं ।
तेरी आँखों से दुनिया देखी,
तेरे मन से जाना इसका हाल ।
सच झूंठ का भेद सिखाया ,
समझाया क्या अच्छा क्या बेकार ।
तेरे कदम तले की मिट्टी ,
मेरे मस्तक का श्रृंगार ।
यादों में जब जब खोता हूँ ,
भावों में बहता हूँ ।
नमन तुझे ही करता हूँ ,
ऋण नही कह सकता जिसको ,
यह तो है माँ बस तेरा उपकार ।
ऐसा मिला मुझे माँ तेरा प्यार ।
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---- और अंत में बस इतना ही कह सकता हूँ ----
4---
माँ बस नाम ही काफी है ।
कौई परिभाषा नही ,
माँ तेरे नाम की ।
तू तो राधा की भी बैसी ही थी ,
जैसी थी तू श्याम की ।
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5 ----
माँ पर बार बार लिखा नही जा सकता ।
एक बार लिख जाये जो बो मिटाया नही जा सकता ।
........ "निश्चल" विवेक दुबे ........
रायसेन (म.प्र.)