शुक्रवार, 15 दिसंबर 2017

माँ



माँ तो बस माँ होती है ।
 हर साँस में दुआ होती है ।
 न कोई छल न कोई कपट ।
 बस संसार में माँ ही निष्कपट ।
 हर लेती हर संकट विकट ।
 लगाकर वो बाजी प्राण की ।
 नहीं कोई चाह मान सम्मान की।
 वो बस मूरत वात्सल्य भाव की।
 चाहत बस ममता दुलार की ।
  नही चाहत उपकार भाव की।
     ....विवेक....

माँ


1--------------
आँख आज भी भर आती है ।
माँ जो तू याद आती है ।
 देख माँ आज भी तुझे ,
 मेरी कितनी फ़िक्र रहती है ।
2    ----------------
 देखी है मैंने भी नाराजी माँ की ।
 हाँ देखा है गुस्सा भी उसका ।
 सब कुछ झूठ कुछ देर के लिए ,
 फ़िक्र हुई औलाद की ,
 और बोल पड़ी माँ ।
 आ चल अब खाना खा ।
3      ------------- 
धरा सी शांत, गगन सी विशाल ।
माँ तेरी ममता की , न हो सकी पड़ताल ।
 जब भी बरसी, शीतल जल बनकर।
 स्नेह से किया सरोबर, नित नये अंकुर फूटे ।
 खिले खुशियों के फूल अपार ।
 देती हो बस देती ही रहती हो ।
 नही कभी इंकार ।
 तूफ़ानों से हिली नहीं ,
   सैलाबों से डिगी नहीं ।
 तेरी आँखों से दुनिया देखी,
 तेरे मन से जाना इसका हाल ।
 सच झूंठ का भेद सिखाया ,
 समझाया क्या अच्छा क्या बेकार ।
 तेरे कदम तले की मिट्टी ,
 मेरे मस्तक का श्रृंगार ।
 यादों में जब जब खोता हूँ ,
 भावों में बहता हूँ ।
 नमन तुझे ही करता हूँ ,
  ऋण नही कह सकता जिसको ,
 यह तो है माँ बस तेरा उपकार ।
 ऐसा मिला मुझे माँ तेरा प्यार ।
------------------
   ---- और अंत में बस इतना ही कह सकता हूँ ----
4---
   माँ बस नाम ही काफी है ।
 कौई परिभाषा नही , 
  माँ तेरे नाम की ।
  तू तो राधा की भी बैसी ही थी ,
 जैसी थी तू श्याम की ।
,
5 ----
माँ पर बार बार लिखा नही जा सकता ।
एक बार लिख जाये जो बो मिटाया नही जा सकता ।
   ........ "निश्चल"  विवेक दुबे ........
          रायसेन (म.प्र.)

माँ


"माँ" .,,,,,,,,,
धरा सी शांत गगन सी बिशाल 
माँ तेरी ममता की न हो सकी पड़ताल 
जब भी बरसी शीतल जल बनकर 
स्नेह से किया सरोबार 
नित नए अंकुर फूटे 
खिलाये खुशियो के फूल अपार 
देती हो बस देती ही रहती हो 
नही कभी इंकार 
तुफानो में हिली नहीं 
सैलाबो से डिगी नहीं 
तेरी आँखों से दुनियां देखी 
तेरे मन से जाना इसका हाल 
सच झूठ का भेद सिखाया 
समझाया क्या अच्छा क्या बेकार 
तेरे कदम तले की मिट्टी 
मेरे मस्तक का श्रृंगार 
यादो में जब जब खोता हूँ 
भाबो में बहता हूँ 
नमन तुझे ही करता हूँ 
ऋण नहीं कह सकता जिसको 
बो तो बस है तेरा उपकार 
माँ ऐसा मिला मुझे तेरा प्यार 
..........."निश्चल"   विवेक दुबे..... 




माँ पर बार बार लिखा नही जा सजता जो एक बार लिख जाये बो मिटाया नही जा सकता


ममता माँ की


ममता जब जब जागी थी ।
 माता की टपकी छाती थी ।
 दे शीतल छांया आँचल की ,
 माता सारी रात जागी थी । 

  देख अपलक निगाहों से ,
  गंगा यमुना अबतारी थी ।
  स्तब्ध श्वास थी प्राणों में ,
  अपनी श्वासों से हरी थी ।

   ....."निश्चल" विवेक दुबे ©......


कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...