1
डूबा न कभी मै बस तैरता रहा ।
तिनके सा बजूद अखरता रहा ।
......2
जुबां न कह सकी वो लफ्ज़ कह गए ।
अल्फ़ाज़ मेरे अश्क़ से बहकर गए ।
.... 3
संग पड़ा था जमीं गड़ा था ।
तरकश कर खुदा कहा था ।
....4
शिद्दत से पुकारा इल्म सा सराहा उसने ।
गढ़कर निगाह से बुत कह पुकारा उसने।
.....5
सबब परेशानियों का ,फ़क़त इतना रहा ।
तू परेशां न रहा , मैं भी परेशां न रहा ।
......6
मोल न रहा मेरा कुछ इस तरह ।
बेमोल कहा उसने कुछ जिस तरह ।
....7
मैं तेरे इस जवाब का क्या हिसाब दूँ ।
जिंदगी तुझे जिंदगी का क्या हिसाब दूँ ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
8
उठा दिया अपने घर का ,
रौशनी दिखाने चला था ।
उजियारे वो अपने ,
यूँ मिटाने चला था ।
....9
दिए जले जो रातों को ,
खोजते अहसासों को ।
जलाकर अपनी बाती ,
टटोलते अँधियारों को ।
....10
एक मेरा भी अंदाज़ है , राख होने का ।
सुलग आखरी कश तक,ज़िंदा रहने का ।
..11
हराकर उम्र शौक पाले थे, बड़े शौक से ।
बुझे चिराग़ लड़ न सके,अंधेरों के दौर से।
....
.....विवेक दुबे"निश्चल"©....
12/2/18
डायरी 3
12
मैं तेरे इस सवाल का , क्या ज़वाब दूँ ।
ज़िंदगी तुझे ज़िंदगी का , क्या हिसाब दूँ ।
...13
छुअन की उसको , दरिया की चाह थी ।
बहता गया बस वो , निग़ाह में उसकी ।
...14
देख संग दिली दुनियाँ की, हैरां है बुत ।
सोचता है खड़ा वो, मैं बुत या ये बुत ।
....15
लोटता है वो निग़ाह भर देख मुझे ।
क्यों बुत समझ बैठता है वो मुझे ।
...... 16
उजाला जब भी चला है अंधेरों ने छला है
।
रोशनी की चाह में ,सूरज तो बस जला है ।
....17
मेरी प्रेरणा हो या नही ,नही जानता मैं।
हाँ इतना पता है तुम से सीखा बहुत है ।
...18
हाँ मैं कुछ कहता हूँ कुछ लिखता हूँ ।
बात कभी कभी किताबों से आंगे कहता हूँ ।
....... विवेक दुबे"निश्चल"@...
18/4/18
डायरी 3