शनिवार, 14 अक्तूबर 2017

सूत्र लेखन के



          *लेखन के सूत्र*
      ---- *सूक्ष्म प्रयास* ----
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 लेखन के सूत्र बड़े दुष्कर थे ।
  साहित्य शब्द बड़े प्रखर थे ।
   कर सतत अथक प्रयास ,
   चमके साहित्य में नक्षत्र थे ।

    कुछ लेखन के सूत्र आधार गढ़े थे ।
     ऋचाओं श्लोकों के जो मूल बने थे ।
     रचे दोहा छंद सोरठा स्त्रोत चौपाई ,
     ऋषि मुनि तपस्वी सब संपूर्ण बने थे।

  ज्यों ज्यों युग बदले भाषाएँ बदलीं ।
  त्यों त्यों विधाएँ लेखन की बदलीं ।
  बदली जब तब शैली कला लेखन की ,
   लेखन सूत्र वही मात्राएँ न बदलीं ।
      
    आज लेखन सूत्र का आधार वही है।
    गीता , रामायण का उपकार यही है ।
    तुलसी,मीरा,कोटिल्य,विदुर,पढ़ें महान,
     लेखन कला का बस आधार यही है ।

  हर प्रमेय गणित का ज्यों सही है ।
  व्यकरण मनीषियों का त्यों सही है ।
  पा जाए इसके कुछ लेखन सूत्र,
  सच्ची लेखन कला तो बस यही है ।
  
     *सच्ची लेखन कला तो बस यही है ।*

     ...... विवेक दुबे©.....

कर्तव्य पथ




कर्तव्य पथ बड़े हों, सत्य से सजे हों ।
 सत्कर्म से चलें जो, *उन्नति के द्वार* खुले हों।
  
  समय चाहे विकट हो,बाधाएँ भी अथक हों ।
 सत्य से न डिगे जो, *उन्नति के द्वार* खुलें हों।

  मरुस्थल जो मिले हों,पग पग जले हों ।
 निर्भीक चले जो, *उन्नति के द्वार*  खुले हों ।

 साँझ का आभास हो, क्षितिज सा प्रकाश हो।
 मन दृढ़ विश्वास जो, *उन्नति के द्वार*  खुले हों।

  सत्य की सुगंध हो, हौंसले भी बुलंद हों।
 जीत लें असत्य सभी,इतना सा द्वंद हो ।
   ..... विवेक दुबे ©.....

मंगलवार, 10 अक्तूबर 2017

जिंदगी तुझे


ज़िंदगी जब भी तेरा ख्याल आता है ।
 यूँ अहसास बनकर तू पास आता है।
           जीता हूँ यूँ कुछ पल जिंदगी के मैं ,
            जिंदगी कभी तुझे मेरा ख्याल आता है ।
                 ... विवेक दुबे ©....

सोमवार, 9 अक्तूबर 2017

आज के हालात


सोचता हूँ कुछ लिखूँ आज के हालात पर ,
  एक दबी हुई आह, सिसकते ज़ज्बात पर ।

 मस्जिदों की अजां, मंदिरों के शंख नाद पर ।
 बैचेन युवा की डिग्रियों के भँडार पर ।

 भोजन की थाली से हर दिन घटते भात पर । 
 सोचता हूँ कुछ लिखूँ आज के हालात पर ।

 सरहद पर होते घात के हर वार पर ।
 उन सच्चे वीरो के हर प्रयास पर ।

 सोचता हूँ कुछ लिखूँ आज के हालात पर ।
 राजनीत में बिछी शतरंज की बिसात पर ।

 हर जन सेबक के विश्वास घात पर ।
  आस लगाए फिर भी इस मन के विश्वास पर ।

  सोचता हूँ कुछ लिखूँ आज के हालात पर ।

   ..... विवेक दुबे "विवेक"©.....



काव्य रंगोली में प्रकशित 

मुझे काव्य रंगोली लखीमपुर खीरी द्वारा प्रदत्त मातृत्व ममता सम्मान 2018

हर ले तू शब्दों के तम ।।


हर ले तू शब्दों के तम ।
 उजियारा भर हर दम ।
थाम कर कलम ,
कर नव सृजन ।
हर पल हर दम ।
उकेर पीड़ाओं को भी ,
जीवन के रंग में डुबो कलम ।
हर ले तू शब्दों के तम ।
अवसादों और निराशाओं को ।
छू कर उन अभिलाषाओं को।
आशाओं से खुशियों के भाव बना ।
अपने हृदय मन उदगार उठा।
शब्दों का फिर आकर सजा ।
तू लिखता जा तू लिखता जा ।
हर पल हर क्षण कर बस सृजन 
हर ले तू शब्दों के तम ।
  कर सृजन तू कर सृजन ।
...... विवेक दुबे ©.....

कन्या भ्रूण


कन्या भ्रूण ने,
लगाई गुहार।
मुझे न मार ।
अंश हूँ तेरा,
मैं तेरा प्यार।
फिर दंश क्यों ?
मत छीन मेरा,
जीने का अधिकार।
   ...विवेक दुबे ©...

सबक ज़िन्दगी के


..... सबक ज़िन्दगी के...

जो छूट जाता है ।
वो सिखाती है ।
जिन्दगी ......
किताबो के नहीं ।
कुछ किस्मत के ।
कुछ कर्मो के ।
सबक पढ़ाती है ।
जिन्दगी ....
...विवेक दुबे ©...

हाँ में कुछ कहता हूं


हाँ मैं कुछ कहता हूँ ।
 कुछ लिखता हूँ ।
 कह जाता हूँ बात ,
 कभी कभी ,
 किताबों से आंगे।
  .... विवेक दुबे ©....


वक़्त



तन्हा वक़्त छीन रहा बहुत कुछ ।
 हँसी लेकर वक़्त दे रहा सब कुछ

         बून्द चली मिलने सागर तन से ।
         बरस उठी बदली बन गगन से ।

 क्षितरी बार बार बिन साजन के ।
 बहती चली फिर नदिया बन के ।

       एक दिन बून्द प्यार की जा पहुँची ,
         मिलने साजन सागर के तन से ।

        .... विवेक दुबे°©.....


होंसला


वो सफर जरा मुश्किल था ।
 वो पत्थर नही मंज़िल था ।
 निशां न थे कहीं कदमों के ,
 हौंसला फिर भी हाँसिल था ।
 ..... विवेक दुबे©....



   

दुनिया हो जाए मधुबन


 मानव मे शैतान भटकते।
 पत्थर मे भगवान भटकते।
 तू जड़ तू हो जा चेतन ,
 दुनिया हो जाये मधुवन।
        ...विवेक दुबे©....

रविवार, 8 अक्तूबर 2017

दिनकर तो कल फिर निकलेगा


फैला था दूर तलक वो,
 कुछ बिखरा बिखरा सा ।
  यादों का सामान लिए ,
 कुछ चिथड़ा चिथड़ा सा ।

            दूर निशा नभ में श्यामल सी ,
          यादों के आंगन में काजल सी ।
           बैठा आस लिए उजियारों की,
           फिर नव प्रभात के तारों की  ।

  आएगा दिनकर फिर दमकेगा ।
  नक्षत्र जगत में फिर चमकेगा ।
 यह घोर निशा ही अंत नही ,
 दिनकर तो कल फिर निकलेगा ।

          ....विवेक दुबे "निश्चल"@...




जीवन संगनी




...... जीवन संगनी....

   रागनी तू अनुगामनी तू।
   राग तू अनुरागनी तू ।
               चारणी तू सहचारणी तू।
               शुभ तू शुभगामनी तू।
  नैया तू पतवार तू ।
  सागर तू किनार तू ।
                    प्रणय प्रेम फुहार तू ।
                    प्रकृति सा आधार तू ।              
 प्रीत का प्रसाद तू ।
 सुखद सा प्रकाश तू ।     
               खुशियों का आकाश तू।
               "विवेक" का विश्वास तू ।
   
       ...... *विवेक दुबे* ©,.....

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...