ओ राजनीत के राणकरो ,
ओ सत्ता के फनकारों ।
कब तक बलि चढ़ाओगे ,
मातृ भूमि के रक्षक लालो पर ।
घात पर घात कराओगे ,
अफ़सोस नही कोई पछतावा ।
बस घड़ियाली आंसू बहाओगे ।
कश्मीर पठानकोट अब सुकमा ,
कितनी बहनो का सुहग छुड़ाओगे ।
बातो को अब बिश्राम धरो ,
अब तो सीधा संग्राम करो ।
छुरा घोंपते छुप छुप कर जो ,
उनके घर में घुसकर संहार करो ।
..... *विवेक*...
आज ग़म का सबेरा आज ग़म की रात आई ।
सुकमा में घात लगी कितने वीरों ने जान गवाई ।
.... विवेक ...