मंगलवार, 25 अप्रैल 2017

अफ़सोस नही कोई


ओ राजनीत के राणकरो ,
 ओ सत्ता के फनकारों ।
 कब तक बलि चढ़ाओगे ,
 मातृ भूमि के रक्षक लालो पर ।
 घात पर घात कराओगे ,
  अफ़सोस नही कोई  पछतावा ।
  बस घड़ियाली आंसू बहाओगे ।
 कश्मीर पठानकोट अब सुकमा ,
  कितनी बहनो का सुहग छुड़ाओगे ।
  बातो को अब बिश्राम धरो ,
 अब तो सीधा संग्राम करो ।
  छुरा घोंपते छुप छुप कर जो ,
 उनके घर में घुसकर संहार करो ।
   ..... *विवेक*...


आज ग़म का सबेरा आज ग़म की रात आई ।
 सुकमा में घात लगी कितने वीरों ने जान गवाई ।
 
   .... विवेक ...

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...