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कुंडलियां छंद
रात अंधेरी आज की ,
बादल बिजुरी झूर ।
राह निहारे आस में ,
पिया बहुत हैं दूर ।
पिया बहुत हैं दूर ,
कशिश मन में है भारी ।
व्याकुल मन साजनी ,
रात लगत नही न्यारी ।
आओ अब साजना,
ताप अगन बड़ी भारी ।
तप रही ये रातें,
सुध बिसरात है सारी ।
.... विवेक दुबे "निश्चल"@....
डायरी 7
कुंडलियां छंद
रात अंधेरी आज की ,
बादल बिजुरी झूर ।
राह निहारे आस में ,
पिया बहुत हैं दूर ।
पिया बहुत हैं दूर ,
कशिश मन में है भारी ।
व्याकुल मन साजनी ,
रात लगत नही न्यारी ।
आओ अब साजना,
ताप अगन बड़ी भारी ।
तप रही ये रातें,
सुध बिसरात है सारी ।
.... विवेक दुबे "निश्चल"@....
डायरी 7