शनिवार, 3 मार्च 2018

वक़्त जाया क्यों होते हैं।

बेकार ही वक़्त क्यों जाया होते है ।
 कोई आए कोई नही आए होते है ।
 गुजरते नजदीक से मेरे आपने ही ,
 जाने क्यों वो नजरें चुराए होते है ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...

एक प्रश्न


यह न होता वो होता ।
 वो न होता यह होता ।
 प्रश्न यही चलते ज़ीवन में ,
 यह न होता तब वो होता ।
 वो न होता तब यह होता ।
 एक प्रश्न यही जीवन से ,
 क्या तब भी ज़ीवन होता ?
....विवेक दुबे"निश्चल"@...

श्रृंगारित उर्वी फिर

 व्यथित देख उसे, हृदय द्रवित उसका ।
 प्रालेय बन अंबर,  धरा तन पिघला ।
 छलके स्वेद कण , तन अंबर से ,
पुलकित उर्वी , तन फिर दमका ।
 आभित दीप्त प्रभा , निहार कण कण ,
 श्रृंगारित उर्वी फिर , नवयौवन तन मन ।
.........विवेक दुबे"निश्चल"@...

शुक्रवार, 2 मार्च 2018

रंग खिले हैं होली के

रंग खिले हैं होली के ।
हर चहरे पे रंगोली से । 

कुछ भींगे भींगे यदों में ।
कुछ सच्चे कुछ पक्के से ,
 
रखे रह गए वादों के बर्तन में ,
 सजते कुछ अध कच्चे से ।

  झलकें साजन की यदों में  ।
  प्रीत रंग भरे आँचल से
 
 इस होली उतरे  आँगन में ,
 उड़ते यादों के आँचल से ।
 
अपने ही मन आँगन में ।
 खेले होली गोरी साजन से ।
 

 ... विवेक दुबे"निश्चल"@....
Blog post 2/3/18

धो डालो आज रंग वो सारे

धो डालो आज रंग वो सारे ।
लगते हैं अक्सर जो खारे ।
 अश्कों की में बारिश घुलते जो ,
 मीठा उन्हें भला कौन पुकारे ।
 बहता पीर नीर अँखियों से ,
  तब नदियाँ के कौन सहारे ।
 तप्त धरा उस हृदय तल की ,
 सावन सा उसे कौन सम्हाले ।
 धो डालो आज....
... विवेक दुबे"निश्चल"@...

सपने सज जाने दे

सपने सज जाने दे ।
 ख्वाब जग जाने दे ।
 छूटे न अधूरा कोई ,
 पहले सुबह हो जाने के ।
 ... विवेक दुबे"निश्चल"@..



खिल उठे जीवन के रंग

खिल उठें ज़ीवन के रंग ।
 आशाओं के अहसासों सँग ।
 घोर निराशाओं की अँधी में,
  दृण "निश्चल" सहारों सँग ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...

गुरुवार, 1 मार्च 2018

रंग इस फ़ागुन के

रंग चढ़े जो इस फ़ागुन के ।
उतरें न यह उस फ़ागुन से ।
 प्रीत के रंग लगा दे सजनी ,
 अपने साजन के इन नैनन से ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..

वक़्त मिले तब आना तुम


सुमधुर कामनाएं होली की ।
 स्नेहिल रंगों की बोली की । 
 सजी हुई है थाल हृदय रंग ,
 अहसासों की हमजोली सी ।

वक़्त मिले तब आना तुम ।
 यादों को रंग जाना तुम ।
   इन अहसासों के रंगों से ,
   मुझको तर कर जाना तुम ।

    रंगोत्सव मङ्गलमय हो ।
     हर रंग ज़ीवन खिला हो ।
     बरसे गुलाल खुशियों की ,

    स्नेहिल सुगंध भरा हो ।

     .... विवेक दुबे"निश्चल"@...

कोई एक रंग चुने ऐसा

आओ कोई एक रंग चुने ऐसा ।
 न हो कोई दूजा उसके जैसा ।
 छुप जाए कालिख़ बैर भाव की ,
 चढ़ जाए रंग प्रेम प्रीत का गहरा ।
आओ कोई एक रंग...
 धुल जाएँ रंज-ओ-मलाला ,
 उड़ाएं खुशियों की गुलाल ।
 पी प्याला देशप्रेम मधुशाला से ,
 मद नशा राष्ट्र प्रेम छा जाए ।
आओ कोई एक रंग...
 प्रह्लाद बचे हम सबके मन भीतर ।
 ज्वाल उठे जो होलिका दहन की ।
 उस सँग हो जाए दहन होलिका ,
 तेरे मेरे सबके कुंठित मन की ।
आओ कोई एक रंग....
... विवेक दुबे"निश्चल"@..

मंगलवार, 27 फ़रवरी 2018

रास्ते यहीं कहीं

खोजते सभी हैं ,
 रास्ते यहीं कही हैं ।
विवेक चूकते हैं निग़ाह से,
 फासला दो पग का नही है ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...

सत्य

सत्य ठहरा कुछ पल को ।
 सत्य रुका कभी नही है । 
 हारता असत्य सदा से,
 सत्य का सत्य यही है।
....विवेक दुबे"निश्चल"@..

मन

बात पहुँचे मन की जन तक ।
पैठ बनाए गहरे तल मन तक ।
क्या करेंगे मात्राएँ गिन कर ,
विचार चले जो फिर कल तक ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...

मन

शब्द मन की उतपत्ति हैं।
 मन हर नियम से परे है ।
 मन रचना की आत्मा ।
 नियम मन का बाधक हैं।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..

सटीकता पर प्रश्न चिन्ह

सटीकता पर प्रश्न चिन्ह लगा हुआ था ।
 चेहरा था  निर्भीक मगर डरा हुआ था ।
 गुजरता था मैं अनजानी राहों से फिर भी ,
 अपने "निश्चल" विश्वास से भरा हुआ था ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...

लिखता किस्से पल पल के

ख्वाहिशें होतीं दुनियाँ की अपने दिल में ।
 ख्वाहिशें उतरतीं मेरी कलम से पन्नो में । 
 लिखता हूँ अपने किस्से मैं पल पल के,
 आते जो पास मेरे खुद-ब-खुद चल के ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@...

वो सफ़र जरा मुश्किल था

  वो सफ़र ज़रा मुश्किल था ।
 वो पत्थर नही मंज़िल था ।
 निशां न थे कहीं क़दमों के ,
 हौंसला फिर भी हाँसिल था ।
....
शाश्वत सत्य यही,
विधि विधान यही ।
 मिलता मान सम्मान,
 होता अपमान यहीं।
  इस काव्य विधा के मधुवन में,
 असल नक़ल की पहचान नही।
 .... विवेक दुबे@...

छोड़ आज का जिकर


 अब दिन गया गुजर ।
  कर कल की फ़िकर ।
         डूब ले तू कान्हा में ,
         छोड़ आज का जिकर।
              ... विवेक दुबे "निश्चल"@...

शोर बहुत है

 शोर बहुत है खिड़की खोल दो ।
  बेकार को न ज्यादा मोल दो।
   बिसात पर लगाकर दाव ,
  प्यादों को जरा खोल दो ।
 ...

 शोर बहुत है खिड़की खोल दो ।
  बेकार को न ज्यादा मोल दो।
   बिसात पर लगाता दाव  ,
   पांचाली को जरा बोल दो ।
 ... विवेक दुबे"निश्चल"@...

वक़्त बदला वक़्त के

वक़्त बदला वक़्त के हालात से ।
 चलते रहे हम वक़्त के हिसाब से ।
 मजबूर हुए इस क़दर क्यु हम ,
 न चला वक़्त अपने हिसाब से ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..

सब है पर

 सब है पर क्यों कुछ नही  ।
 भाग्य पर क्यों बस नही ।
 चलता रोशनी की छाँव में
 पर साँझ ढले मुकाम नही  ।
 ... विवेक दुबे"निश्चल"@..

चाहतों के मुक़ाम हुए

चाहतों के  ही   मुक़ाम हुए ।
 सफर मन्ज़िलों के नाम हुए ।
 जीतते हारकर ही जीतने वाले , 
 जो न लड़े वो कहाँ मुक़ाम हुए ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...

मैं अजूबा

मैं भी एक अजूबा अजूबों के शहर में ।
 खटकता ही रहा हूँ हर एक नजर में ।
 छुपा न सका मैं फ़ितरत को अपनी ,
 बड़ा दर्द छुपा था जो मेरे ज़िगर में ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@...

चले चलो बढे चलो

न रुको कही न थको कहीं ,
चले चलो बढे चलो ।
 न गिनो कदम निशां को,
 पत्थर मील के बने चलो ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...

शोहरत का प्याला

 जबसे मैं मशहूर हुआ ।
 अपनो से मैं दूर हुआ ।
  पीकर प्याला शोहरत का,
   मैं बहुत मायूस हुआ ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...

न बढ़ा कद फ़रेब का

  कुसूर बस इतना रहा ।
  बे-कुसूर मैं अदना रहा ।
  न बढ़ा क़द फ़रेब का ,
  सच तले मैं चलता रहा ।
 .... विवेक दुबे"निश्चल"@..

दर्द जताया न गया

दर्द गुलाबों से जताया न गया ।
  काँटों को गैर बताया न गया । 
 दिखाकर ज़ख्म अपने दिल के,
 जमाने को रुलाया न गया ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@.....

कारवां सा हुआ

  कारवां के संग खुद कारवां सा हुआ  ।
  हर मुसाफ़िर मेरा ,नाख़ुदा सा हुआ ।

टकराने साहिल तन से सागर से दूर हुआ ।
बिखरा बूंद बूंद साहिल पे चूर चूर हुआ ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..

रो रही चाँदनी

रो रही चाँदनी, सिसक रहा चाँद ।
उदास धरा, सूना सा आसमान ।
  लुट रहे हैं अपनो के ही हाथों,
   आज अपनो के ही मकान। 
 .....विवेक दुबे "निश्चल"©.......

बेटियाँ

दुनियाँ में नाम भी कमातीं हैं बेटीयाँ ।
 बेटों से आंगे भी जातीं है बेटियाँ ।
 करतीं है तन भी मन भी अर्पण ,
 बेटों को जनने जान लगतीं है बेटियाँ ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"©...

सीख रहा हूँ छल

"निश्चल" होता बार बार निष्छल ।
  सीख रहा है "निश्चल" अब छल ।

  मैं "निश्चल" बार बार होता निष्छल ।
  त्रुटि सुधार करता बार बार फिर कल ।
  आज न सीख सका जाने कैसा कल ।
  सीख रहा हूँ मैं भी अब कुछ छल ।
      .... विवेक दुबे "निश्चल"©...

खुद को आइना दिखाते हैं

आइनों ने अक़्स उतारे हैं ।
 जब आइनों में झाँके हैं ।
 जिंदा रखते है ज़मीर यूँ,
  खुद को आइना दिखाते हैं ।
   .... विवेक दुबे "निश्चल"©..

चालें कुटिल नीति की

चलते चालें कुटिल नीत की ,
कलजुग का प्रताप निराला ।
चारों ओर जयकारे उनके ,
  हाथों में फरेब का प्याला ।
  ...विवेक दुबे"निश्चल"©...

आशिक़ी रात से

आशिक़ी रात से न हो तो ।
 मोसकी दिन से क्या भला ।
 जो गिरा नही कभी सफर में,
 वो डगर चला तो चला क्या ।
 ... विवेक दुबे "निश्चल"©..

लकीरें आसमाँ पर

धुँधली सी लकीरें आसमाँ पर,
 ख़यालों की चादर ओढे हुए ।
 इस साँझ के धुंधलके में ,
 यह चिराग़ रोशन न हुए । 
 ....विवेक दुबे"निश्चल"@.. ..

कलम अंजाम

इतना कलम काम लिखा ।
 सुबह से शाम लिखा ।
 बस एक छोटी सी *वाह* ,
 उसने हमे अंजाम लिखा ।
... विवेक दुबे"निश्चल"..

वक़्त को धोखे

वक़्त को यूँ धोखे हो जाते है।
 कुछ पल को काँटे जी जाते हैं ।
 पीकर अश्कों का पानी हम,
 अक्सर प्यासे ही रह जाते हैं ।
 ... विवेक दुबे "निश्चल"©.

आईना ही असली निकला


  हर चेहरा मेरे शहर में नक़ली था ।
  एक आईना ही असली निकला ।
   सर टिकाया जिस भी काँधे से ,
   वो काँधा ही जख़्मी निकला ।
     ... 

सर टिकाया जिस काँधे से ।
 वो काँधा भी जख़्मी निकला ।
 शहर का हर चेहरा नक़ली था ,
 एक आईना ही असली निकला ।
 .... विवेक दुबे "निश्चल"©..

आइनों ने आईने दिखाए हमे

आइनों ने भी आईने दिखाए हमें । 
 यूँ अक़्स अपने नज़र आए हमें ।
 दूर रखकर दुनियाँ की निगाहों से,
 तन्हा होने के अहसास कराए हमें। 
 .... विवेक दुबे "निश्चल"©..

दर्द ज़िगर करता रहा

दर्द ज़िगर करता रहा ।
 अकेला मैं चलता रहा ।
 आहट न कदमों की साथ ,
 राह ज़िंदगी तय करता रहा ।
 ... विवेक दुबे"निश्चल"@..

मंजिल से पहले घबराना कैसा

मंजिल से पहले घबराना कैसा ।
 बीच राह तेरा थक जाना कैसा ।
 भेद सका न हो अब तक कोई,
 बस साध निशाना तू एक ऐसा । 
 .... विवेक दुबे "निश्चल"°©..

रिश्तों की जुवांन



  रिश्तों की गर कोई जुवान होती ।
 रिश्तों की कुछ और पहचान होती ।
 न होते फिर दिल से दिल के रिश्ते ।
 बाज़ारो में रिश्तों की दुकान होतीं ।
    ....विवेक दुबे "निश्चल"©...

लिखता मैं आशा से

  लिखता मैं बस इस आशा से ।
  समझे अर्थ कोई पिपासा से ।
  जा उतरे गहरे सागर तल में ,
  खोजे सच्चे मोती अभिलाषा से ।
 ..... विवेक दुबे"निश्चल"@..

नियत मेरे शहर की

भागती हर गली सड़क मेरे शहर की ।
 बदली कुछ यूँ नियत मेरे शहर की ।
 छूटते अब हाथ से हाथों हाथ के ,
  उठतीं थीं बाहों में बाहँ विश्वास की ।

 ... विवेक दुबे"निश्चल"@..

"निश्चल" चलता बोझिल है

सूरज हुआ अस्तांचल है ।
  गगन नही कोई हलचल है ।
  साथ सितारों के चँदा भी,
 "निश्चल" चलता बोझिल है ।
   .... विवेक दुबे ©..

उड़ न पाता मन

फूल फूल मुरझाता सा ,
             मन कुछ घबराता सा।
 पाकर भी पँख पखेरू,
                पर उड़ न पाता सा ।
 .... 

फूल फूल मुरझाता सा ,
          मन कुछ घबराता सा।
 पाकर भी पँख पखेरू,
             उड़ न पाता मन सा ।
 .... विवेक दुबे "निश्चल"..

धारा नदिया की

वक़्त से वक़्त पर वक़्त नही ।
 बेवक़्त सा वक़्त बेवक़्त नही ।
 मिलने बही वो धारा नदियाँ की,
  समंदर तुझ सी वो सख़्त नही ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...

सोमवार, 26 फ़रवरी 2018

ज़िंदगी

तू रूठती तुझे मनाता ज़िंदगी ।
तुझसे बस इतना नाता ज़िंदगी ।
 चलता रहा अपना साथ यूँ ही ,
तुझे प्यार कब जताता जिंदगी ।
... 

मैं ख़्वाबों से निकलूं जरा ।
अपने गमों से उबरूं जरा ।
 ले आऊँ पल फुर्सत के जरा ,
 ज़िंदगी तुझे प्यार कर लूं जरा ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...