कुछ खास नहीं कवि पिता की संतान हूँ । ..... निर्दलीय प्रकाशन भोपाल द्वारा बर्ष 2012 में "युवा सृजन धर्मिता अलंकरण" से अलंकृत। जन चेतना साहित्यिक सांस्कृतिक समिति पीलीभीत द्वारा 2017 श्रेष्ठ रचनाकार से सम्मानित कव्य रंगोली त्रैमासिक पत्रिका लखीमपुर खीरी द्वारा साहित्य भूषण सम्मान 2017 से सम्मानित "निश्चल" मन से निश्छल लिखते जाओ । ..... . (रचनाये मौलिक स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित .)
शनिवार, 3 मार्च 2018
एक प्रश्न
यह न होता वो होता ।
वो न होता यह होता ।
प्रश्न यही चलते ज़ीवन में ,
यह न होता तब वो होता ।
वो न होता तब यह होता ।
एक प्रश्न यही जीवन से ,
क्या तब भी ज़ीवन होता ?
....विवेक दुबे"निश्चल"@...
श्रृंगारित उर्वी फिर
व्यथित देख उसे, हृदय द्रवित उसका ।
प्रालेय बन अंबर, धरा तन पिघला ।
छलके स्वेद कण , तन अंबर से ,
पुलकित उर्वी , तन फिर दमका ।
आभित दीप्त प्रभा , निहार कण कण ,
श्रृंगारित उर्वी फिर , नवयौवन तन मन ।
.........विवेक दुबे"निश्चल"@...
प्रालेय बन अंबर, धरा तन पिघला ।
छलके स्वेद कण , तन अंबर से ,
पुलकित उर्वी , तन फिर दमका ।
आभित दीप्त प्रभा , निहार कण कण ,
श्रृंगारित उर्वी फिर , नवयौवन तन मन ।
.........विवेक दुबे"निश्चल"@...
शुक्रवार, 2 मार्च 2018
रंग खिले हैं होली के
रंग खिले हैं होली के ।
हर चहरे पे रंगोली से ।
कुछ भींगे भींगे यदों में ।
कुछ सच्चे कुछ पक्के से ,
रखे रह गए वादों के बर्तन में ,
सजते कुछ अध कच्चे से ।
झलकें साजन की यदों में ।
प्रीत रंग भरे आँचल से
इस होली उतरे आँगन में ,
उड़ते यादों के आँचल से ।
अपने ही मन आँगन में ।
खेले होली गोरी साजन से ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@....
Blog post 2/3/18
धो डालो आज रंग वो सारे
धो डालो आज रंग वो सारे ।
लगते हैं अक्सर जो खारे ।
अश्कों की में बारिश घुलते जो ,
मीठा उन्हें भला कौन पुकारे ।
बहता पीर नीर अँखियों से ,
तब नदियाँ के कौन सहारे ।
तप्त धरा उस हृदय तल की ,
सावन सा उसे कौन सम्हाले ।
धो डालो आज....
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
लगते हैं अक्सर जो खारे ।
अश्कों की में बारिश घुलते जो ,
मीठा उन्हें भला कौन पुकारे ।
बहता पीर नीर अँखियों से ,
तब नदियाँ के कौन सहारे ।
तप्त धरा उस हृदय तल की ,
सावन सा उसे कौन सम्हाले ।
धो डालो आज....
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
गुरुवार, 1 मार्च 2018
रंग इस फ़ागुन के
रंग चढ़े जो इस फ़ागुन के ।
उतरें न यह उस फ़ागुन से ।
प्रीत के रंग लगा दे सजनी ,
अपने साजन के इन नैनन से ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
उतरें न यह उस फ़ागुन से ।
प्रीत के रंग लगा दे सजनी ,
अपने साजन के इन नैनन से ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
वक़्त मिले तब आना तुम
सुमधुर कामनाएं होली की ।
स्नेहिल रंगों की बोली की ।
सजी हुई है थाल हृदय रंग ,
अहसासों की हमजोली सी ।
वक़्त मिले तब आना तुम ।
यादों को रंग जाना तुम ।
इन अहसासों के रंगों से ,
मुझको तर कर जाना तुम ।
रंगोत्सव मङ्गलमय हो ।
हर रंग ज़ीवन खिला हो ।
बरसे गुलाल खुशियों की ,
स्नेहिल सुगंध भरा हो ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
कोई एक रंग चुने ऐसा
आओ कोई एक रंग चुने ऐसा ।
न हो कोई दूजा उसके जैसा ।
छुप जाए कालिख़ बैर भाव की ,
चढ़ जाए रंग प्रेम प्रीत का गहरा ।
आओ कोई एक रंग...
धुल जाएँ रंज-ओ-मलाला ,
उड़ाएं खुशियों की गुलाल ।
पी प्याला देशप्रेम मधुशाला से ,
मद नशा राष्ट्र प्रेम छा जाए ।
आओ कोई एक रंग...
प्रह्लाद बचे हम सबके मन भीतर ।
ज्वाल उठे जो होलिका दहन की ।
उस सँग हो जाए दहन होलिका ,
तेरे मेरे सबके कुंठित मन की ।
आओ कोई एक रंग....
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
न हो कोई दूजा उसके जैसा ।
छुप जाए कालिख़ बैर भाव की ,
चढ़ जाए रंग प्रेम प्रीत का गहरा ।
आओ कोई एक रंग...
धुल जाएँ रंज-ओ-मलाला ,
उड़ाएं खुशियों की गुलाल ।
पी प्याला देशप्रेम मधुशाला से ,
मद नशा राष्ट्र प्रेम छा जाए ।
आओ कोई एक रंग...
प्रह्लाद बचे हम सबके मन भीतर ।
ज्वाल उठे जो होलिका दहन की ।
उस सँग हो जाए दहन होलिका ,
तेरे मेरे सबके कुंठित मन की ।
आओ कोई एक रंग....
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
मंगलवार, 27 फ़रवरी 2018
रास्ते यहीं कहीं
खोजते सभी हैं ,
रास्ते यहीं कही हैं ।
विवेक चूकते हैं निग़ाह से,
फासला दो पग का नही है ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
रास्ते यहीं कही हैं ।
विवेक चूकते हैं निग़ाह से,
फासला दो पग का नही है ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
सत्य
सत्य ठहरा कुछ पल को ।
सत्य रुका कभी नही है ।
हारता असत्य सदा से,
सत्य का सत्य यही है।
....विवेक दुबे"निश्चल"@..
सत्य रुका कभी नही है ।
हारता असत्य सदा से,
सत्य का सत्य यही है।
....विवेक दुबे"निश्चल"@..
मन
बात पहुँचे मन की जन तक ।
पैठ बनाए गहरे तल मन तक ।
क्या करेंगे मात्राएँ गिन कर ,
विचार चले जो फिर कल तक ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
पैठ बनाए गहरे तल मन तक ।
क्या करेंगे मात्राएँ गिन कर ,
विचार चले जो फिर कल तक ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
मन
शब्द मन की उतपत्ति हैं।
मन हर नियम से परे है ।
मन रचना की आत्मा ।
नियम मन का बाधक हैं।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
मन हर नियम से परे है ।
मन रचना की आत्मा ।
नियम मन का बाधक हैं।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
सटीकता पर प्रश्न चिन्ह
सटीकता पर प्रश्न चिन्ह लगा हुआ था ।
चेहरा था निर्भीक मगर डरा हुआ था ।
गुजरता था मैं अनजानी राहों से फिर भी ,
अपने "निश्चल" विश्वास से भरा हुआ था ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
चेहरा था निर्भीक मगर डरा हुआ था ।
गुजरता था मैं अनजानी राहों से फिर भी ,
अपने "निश्चल" विश्वास से भरा हुआ था ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
लिखता किस्से पल पल के
ख्वाहिशें होतीं दुनियाँ की अपने दिल में ।
ख्वाहिशें उतरतीं मेरी कलम से पन्नो में ।
लिखता हूँ अपने किस्से मैं पल पल के,
आते जो पास मेरे खुद-ब-खुद चल के ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@...
ख्वाहिशें उतरतीं मेरी कलम से पन्नो में ।
लिखता हूँ अपने किस्से मैं पल पल के,
आते जो पास मेरे खुद-ब-खुद चल के ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@...
वो सफ़र जरा मुश्किल था
वो सफ़र ज़रा मुश्किल था ।
वो पत्थर नही मंज़िल था ।
निशां न थे कहीं क़दमों के ,
हौंसला फिर भी हाँसिल था ।
....
शाश्वत सत्य यही,
विधि विधान यही ।
मिलता मान सम्मान,
होता अपमान यहीं।
इस काव्य विधा के मधुवन में,
असल नक़ल की पहचान नही।
.... विवेक दुबे@...
वो पत्थर नही मंज़िल था ।
निशां न थे कहीं क़दमों के ,
हौंसला फिर भी हाँसिल था ।
....
शाश्वत सत्य यही,
विधि विधान यही ।
मिलता मान सम्मान,
होता अपमान यहीं।
इस काव्य विधा के मधुवन में,
असल नक़ल की पहचान नही।
.... विवेक दुबे@...
छोड़ आज का जिकर
अब दिन गया गुजर ।
कर कल की फ़िकर ।
डूब ले तू कान्हा में ,
छोड़ आज का जिकर।
... विवेक दुबे "निश्चल"@...
शोर बहुत है
शोर बहुत है खिड़की खोल दो ।
बेकार को न ज्यादा मोल दो।
बिसात पर लगाकर दाव ,
प्यादों को जरा खोल दो ।
...
शोर बहुत है खिड़की खोल दो ।
बेकार को न ज्यादा मोल दो।
बिसात पर लगाता दाव ,
पांचाली को जरा बोल दो ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
बेकार को न ज्यादा मोल दो।
बिसात पर लगाकर दाव ,
प्यादों को जरा खोल दो ।
...
शोर बहुत है खिड़की खोल दो ।
बेकार को न ज्यादा मोल दो।
बिसात पर लगाता दाव ,
पांचाली को जरा बोल दो ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
वक़्त बदला वक़्त के
वक़्त बदला वक़्त के हालात से ।
चलते रहे हम वक़्त के हिसाब से ।
मजबूर हुए इस क़दर क्यु हम ,
न चला वक़्त अपने हिसाब से ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
चलते रहे हम वक़्त के हिसाब से ।
मजबूर हुए इस क़दर क्यु हम ,
न चला वक़्त अपने हिसाब से ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
सब है पर
सब है पर क्यों कुछ नही ।
भाग्य पर क्यों बस नही ।
चलता रोशनी की छाँव में
पर साँझ ढले मुकाम नही ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
भाग्य पर क्यों बस नही ।
चलता रोशनी की छाँव में
पर साँझ ढले मुकाम नही ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
चाहतों के मुक़ाम हुए
चाहतों के ही मुक़ाम हुए ।
सफर मन्ज़िलों के नाम हुए ।
जीतते हारकर ही जीतने वाले ,
जो न लड़े वो कहाँ मुक़ाम हुए ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
सफर मन्ज़िलों के नाम हुए ।
जीतते हारकर ही जीतने वाले ,
जो न लड़े वो कहाँ मुक़ाम हुए ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
मैं अजूबा
मैं भी एक अजूबा अजूबों के शहर में ।
खटकता ही रहा हूँ हर एक नजर में ।
छुपा न सका मैं फ़ितरत को अपनी ,
बड़ा दर्द छुपा था जो मेरे ज़िगर में ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@...
खटकता ही रहा हूँ हर एक नजर में ।
छुपा न सका मैं फ़ितरत को अपनी ,
बड़ा दर्द छुपा था जो मेरे ज़िगर में ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@...
चले चलो बढे चलो
न रुको कही न थको कहीं ,
चले चलो बढे चलो ।
न गिनो कदम निशां को,
पत्थर मील के बने चलो ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
चले चलो बढे चलो ।
न गिनो कदम निशां को,
पत्थर मील के बने चलो ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
शोहरत का प्याला
जबसे मैं मशहूर हुआ ।
अपनो से मैं दूर हुआ ।
पीकर प्याला शोहरत का,
मैं बहुत मायूस हुआ ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
अपनो से मैं दूर हुआ ।
पीकर प्याला शोहरत का,
मैं बहुत मायूस हुआ ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
न बढ़ा कद फ़रेब का
कुसूर बस इतना रहा ।
बे-कुसूर मैं अदना रहा ।
न बढ़ा क़द फ़रेब का ,
सच तले मैं चलता रहा ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
बे-कुसूर मैं अदना रहा ।
न बढ़ा क़द फ़रेब का ,
सच तले मैं चलता रहा ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
दर्द जताया न गया
दर्द गुलाबों से जताया न गया ।
काँटों को गैर बताया न गया ।
दिखाकर ज़ख्म अपने दिल के,
जमाने को रुलाया न गया ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@.....
काँटों को गैर बताया न गया ।
दिखाकर ज़ख्म अपने दिल के,
जमाने को रुलाया न गया ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@.....
कारवां सा हुआ
कारवां के संग खुद कारवां सा हुआ ।
हर मुसाफ़िर मेरा ,नाख़ुदा सा हुआ ।
टकराने साहिल तन से सागर से दूर हुआ ।
बिखरा बूंद बूंद साहिल पे चूर चूर हुआ ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
हर मुसाफ़िर मेरा ,नाख़ुदा सा हुआ ।
टकराने साहिल तन से सागर से दूर हुआ ।
बिखरा बूंद बूंद साहिल पे चूर चूर हुआ ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
रो रही चाँदनी
रो रही चाँदनी, सिसक रहा चाँद ।
उदास धरा, सूना सा आसमान ।
लुट रहे हैं अपनो के ही हाथों,
आज अपनो के ही मकान।
.....विवेक दुबे "निश्चल"©.......
उदास धरा, सूना सा आसमान ।
लुट रहे हैं अपनो के ही हाथों,
आज अपनो के ही मकान।
.....विवेक दुबे "निश्चल"©.......
बेटियाँ
दुनियाँ में नाम भी कमातीं हैं बेटीयाँ ।
बेटों से आंगे भी जातीं है बेटियाँ ।
करतीं है तन भी मन भी अर्पण ,
बेटों को जनने जान लगतीं है बेटियाँ ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"©...
बेटों से आंगे भी जातीं है बेटियाँ ।
करतीं है तन भी मन भी अर्पण ,
बेटों को जनने जान लगतीं है बेटियाँ ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"©...
सीख रहा हूँ छल
"निश्चल" होता बार बार निष्छल ।
सीख रहा है "निश्चल" अब छल ।
मैं "निश्चल" बार बार होता निष्छल ।
त्रुटि सुधार करता बार बार फिर कल ।
आज न सीख सका जाने कैसा कल ।
सीख रहा हूँ मैं भी अब कुछ छल ।
.... विवेक दुबे "निश्चल"©...
सीख रहा है "निश्चल" अब छल ।
मैं "निश्चल" बार बार होता निष्छल ।
त्रुटि सुधार करता बार बार फिर कल ।
आज न सीख सका जाने कैसा कल ।
सीख रहा हूँ मैं भी अब कुछ छल ।
.... विवेक दुबे "निश्चल"©...
खुद को आइना दिखाते हैं
आइनों ने अक़्स उतारे हैं ।
जब आइनों में झाँके हैं ।
जिंदा रखते है ज़मीर यूँ,
खुद को आइना दिखाते हैं ।
.... विवेक दुबे "निश्चल"©..
जब आइनों में झाँके हैं ।
जिंदा रखते है ज़मीर यूँ,
खुद को आइना दिखाते हैं ।
.... विवेक दुबे "निश्चल"©..
चालें कुटिल नीति की
चलते चालें कुटिल नीत की ,
कलजुग का प्रताप निराला ।
चारों ओर जयकारे उनके ,
हाथों में फरेब का प्याला ।
...विवेक दुबे"निश्चल"©...
कलजुग का प्रताप निराला ।
चारों ओर जयकारे उनके ,
हाथों में फरेब का प्याला ।
...विवेक दुबे"निश्चल"©...
आशिक़ी रात से
आशिक़ी रात से न हो तो ।
मोसकी दिन से क्या भला ।
जो गिरा नही कभी सफर में,
वो डगर चला तो चला क्या ।
... विवेक दुबे "निश्चल"©..
मोसकी दिन से क्या भला ।
जो गिरा नही कभी सफर में,
वो डगर चला तो चला क्या ।
... विवेक दुबे "निश्चल"©..
लकीरें आसमाँ पर
धुँधली सी लकीरें आसमाँ पर,
ख़यालों की चादर ओढे हुए ।
इस साँझ के धुंधलके में ,
यह चिराग़ रोशन न हुए ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@.. ..
ख़यालों की चादर ओढे हुए ।
इस साँझ के धुंधलके में ,
यह चिराग़ रोशन न हुए ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@.. ..
कलम अंजाम
इतना कलम काम लिखा ।
सुबह से शाम लिखा ।
बस एक छोटी सी *वाह* ,
उसने हमे अंजाम लिखा ।
... विवेक दुबे"निश्चल"..
सुबह से शाम लिखा ।
बस एक छोटी सी *वाह* ,
उसने हमे अंजाम लिखा ।
... विवेक दुबे"निश्चल"..
वक़्त को धोखे
वक़्त को यूँ धोखे हो जाते है।
कुछ पल को काँटे जी जाते हैं ।
पीकर अश्कों का पानी हम,
अक्सर प्यासे ही रह जाते हैं ।
... विवेक दुबे "निश्चल"©.
कुछ पल को काँटे जी जाते हैं ।
पीकर अश्कों का पानी हम,
अक्सर प्यासे ही रह जाते हैं ।
... विवेक दुबे "निश्चल"©.
आईना ही असली निकला
हर चेहरा मेरे शहर में नक़ली था ।
एक आईना ही असली निकला ।
सर टिकाया जिस भी काँधे से ,
वो काँधा ही जख़्मी निकला ।
...
सर टिकाया जिस काँधे से ।
वो काँधा भी जख़्मी निकला ।
शहर का हर चेहरा नक़ली था ,
एक आईना ही असली निकला ।
.... विवेक दुबे "निश्चल"©..
आइनों ने आईने दिखाए हमे
आइनों ने भी आईने दिखाए हमें ।
यूँ अक़्स अपने नज़र आए हमें ।
दूर रखकर दुनियाँ की निगाहों से,
तन्हा होने के अहसास कराए हमें।
.... विवेक दुबे "निश्चल"©..
यूँ अक़्स अपने नज़र आए हमें ।
दूर रखकर दुनियाँ की निगाहों से,
तन्हा होने के अहसास कराए हमें।
.... विवेक दुबे "निश्चल"©..
दर्द ज़िगर करता रहा
दर्द ज़िगर करता रहा ।
अकेला मैं चलता रहा ।
आहट न कदमों की साथ ,
राह ज़िंदगी तय करता रहा ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
अकेला मैं चलता रहा ।
आहट न कदमों की साथ ,
राह ज़िंदगी तय करता रहा ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
मंजिल से पहले घबराना कैसा
मंजिल से पहले घबराना कैसा ।
बीच राह तेरा थक जाना कैसा ।
भेद सका न हो अब तक कोई,
बस साध निशाना तू एक ऐसा ।
.... विवेक दुबे "निश्चल"°©..
बीच राह तेरा थक जाना कैसा ।
भेद सका न हो अब तक कोई,
बस साध निशाना तू एक ऐसा ।
.... विवेक दुबे "निश्चल"°©..
रिश्तों की जुवांन
रिश्तों की गर कोई जुवान होती ।
रिश्तों की कुछ और पहचान होती ।
न होते फिर दिल से दिल के रिश्ते ।
बाज़ारो में रिश्तों की दुकान होतीं ।
....विवेक दुबे "निश्चल"©...
लिखता मैं आशा से
लिखता मैं बस इस आशा से ।
समझे अर्थ कोई पिपासा से ।
जा उतरे गहरे सागर तल में ,
खोजे सच्चे मोती अभिलाषा से ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@..
समझे अर्थ कोई पिपासा से ।
जा उतरे गहरे सागर तल में ,
खोजे सच्चे मोती अभिलाषा से ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@..
नियत मेरे शहर की
भागती हर गली सड़क मेरे शहर की ।
बदली कुछ यूँ नियत मेरे शहर की ।
छूटते अब हाथ से हाथों हाथ के ,
उठतीं थीं बाहों में बाहँ विश्वास की ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
बदली कुछ यूँ नियत मेरे शहर की ।
छूटते अब हाथ से हाथों हाथ के ,
उठतीं थीं बाहों में बाहँ विश्वास की ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
"निश्चल" चलता बोझिल है
सूरज हुआ अस्तांचल है ।
गगन नही कोई हलचल है ।
साथ सितारों के चँदा भी,
"निश्चल" चलता बोझिल है ।
.... विवेक दुबे ©..
गगन नही कोई हलचल है ।
साथ सितारों के चँदा भी,
"निश्चल" चलता बोझिल है ।
.... विवेक दुबे ©..
उड़ न पाता मन
फूल फूल मुरझाता सा ,
मन कुछ घबराता सा।
पाकर भी पँख पखेरू,
पर उड़ न पाता सा ।
....
फूल फूल मुरझाता सा ,
मन कुछ घबराता सा।
पाकर भी पँख पखेरू,
उड़ न पाता मन सा ।
.... विवेक दुबे "निश्चल"..
मन कुछ घबराता सा।
पाकर भी पँख पखेरू,
पर उड़ न पाता सा ।
....
फूल फूल मुरझाता सा ,
मन कुछ घबराता सा।
पाकर भी पँख पखेरू,
उड़ न पाता मन सा ।
.... विवेक दुबे "निश्चल"..
धारा नदिया की
वक़्त से वक़्त पर वक़्त नही ।
बेवक़्त सा वक़्त बेवक़्त नही ।
मिलने बही वो धारा नदियाँ की,
समंदर तुझ सी वो सख़्त नही ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
बेवक़्त सा वक़्त बेवक़्त नही ।
मिलने बही वो धारा नदियाँ की,
समंदर तुझ सी वो सख़्त नही ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
सोमवार, 26 फ़रवरी 2018
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
कलम चलती है शब्द जागते हैं।
सम्मान पत्र
मान मिला सम्मान मिला। अपनो में स्थान मिला । खिली कलम कमल सी, शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई । शब्द जागते...