बुधवार, 3 जून 2015

बदलते परिदृश्य


उसकी बातो से टूट सी गई माँ निचुड़ सी गई माँ
उसने कहा जब लूँगी अपने फ़ैसले मैं खुद अब
ताकती रही शून्य में माँ सोचती रही बहुत कुछ माँ
शयद यह की अब तक जो फैसलें लिये तेरे लिए
क्या गलत थे वो ..
फिर अगले ही पल आँखें की जोर से बंद
गिरी कुछ आँख से बूंदें पानी की
और अपने कामों में थके क़दमों से लग गई माँ
आज बेटी के इस फ़ैसले से
कितनी बूढ़ी लग रही है माँ
सुनकर इस फैसलें को स्तब्ध है
पिता वो कल तक गर्व करता था जो
मैरी संतान है यह दुनियाँ से कहता था जो ...
.....विवेक.....

मंगलवार, 2 जून 2015

क्या होती है माँ


देख क्या होती है माँ
 बच्चों की खुशियों पर क्यों रोती है माँ
 दूनियाँ को ख़ुशी के नजर आये बो
पर माँ को पल याद आये बो
 धरा था जिस वक़्त गर्भ में
 जना था वाजी लगा जान की
नही की परवाह अपने प्राण की
 सारे पल आज याद आये बो
दूनियाँ अपने दर्द कैसे बताये बो
 बस अपनी आँखों से मोती बरसाये बो
 यह बात तब और भी गहरी होती है
 जब बो बेटिओं की माँ होती है
 बो ताने याद आते है
 जो बेटी जनने पर
 दूनियाँ से बिन माँगे मिल जाते है मिलते ही जाते है
....विवेक...

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...