अहीर छंद
11
रूठ गए सब तब भी।
मान गए हम जब भी ।
रीत प्रीत आन की ।
सीख यही प्राण की ।
जीत तले साँझ सी ।
सिद्ध नही बिश्राम सी ।
भोर फिर संग्राम की ।
नव पथ आयाम की ।
आता गया रुकना ।
भावों सँग झुकना ।
हार नही थकना ।
बात यही कसना ।
जीत तले न रुकना ।
सिद्ध हुए न बिकना ।
लक्ष्य नए फिर गढ़ना ।
नित्य नव पथ बढ़ना ।
... *विवेक दुबे"निश्चल"*@..
11
रूठ गए सब तब भी।
मान गए हम जब भी ।
रीत प्रीत आन की ।
सीख यही प्राण की ।
जीत तले साँझ सी ।
सिद्ध नही बिश्राम सी ।
भोर फिर संग्राम की ।
नव पथ आयाम की ।
आता गया रुकना ।
भावों सँग झुकना ।
हार नही थकना ।
बात यही कसना ।
जीत तले न रुकना ।
सिद्ध हुए न बिकना ।
लक्ष्य नए फिर गढ़ना ।
नित्य नव पथ बढ़ना ।
... *विवेक दुबे"निश्चल"*@..