सोमवार, 15 अक्तूबर 2018

नव पथ बढ़ना

अहीर  छंद
11 
 रूठ गए सब तब भी।
 मान गए हम जब भी ।
          रीत प्रीत आन की ।
          सीख यही प्राण की ।

जीत तले साँझ सी ।
सिद्ध नही बिश्राम सी ।
             भोर फिर संग्राम की ।
              नव पथ आयाम की ।

आता गया रुकना ।
  भावों सँग झुकना ।
             हार नही थकना ।
             बात यही कसना ।

   जीत तले न रुकना ।
   सिद्ध हुए न बिकना ।
              लक्ष्य नए फिर गढ़ना ।
              नित्य नव पथ बढ़ना ।

... *विवेक दुबे"निश्चल"*@..

आया माता निकट तुम्हारे

मत्ता छंद
222 211 112 2

गीतों में माँ तुम बस जाओ ।
ज्योती सी प्रेम तुम जगाओ ।
 आया माता निकट तुहारे ।
 तू है दाता तुमहि सहारे ।

दीनो की लाज झट बचाये ।
 सारे ही कष्ट फट हटाये ।
 माता तेरे गुन सब गायें ।
 तेरी भक्ती जन जब पायें ।

 दे दो माता सुफल सहारे ।
 आया हूँ याचक बन द्वारे ।
  दाता है तू जग जननी माँ ।
 माया तेरी शिव कथनी माँ ।

  दुर्गा हो आदि शिव शक्ति हो ।
   चंडी माया हर हर भक्ति हो ।
    तेरे ही रूप रचत माया  ।
    सारा प्रकाश जगत छाया ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@....

माँ उपकार करो

मनोज्ञा छंद
(111  212  2 )

 भजत नित्य माता ।
 सकल ज्ञान पाता ।
 चरन पाद सेवा ।
 मिलत ज्ञान मेवा ।

 सहज भाव आया ।
 सकल प्राण लाया ।
 नित तुझे मनाऊँ ।
 कब "विवेक" पाऊँ ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@...


आओ माँ उपकार करो ।
  दुष्टों का तुम संहार करो ।
 पाप अनाचार रजः छाई है ,
  हर पापी पर प्रहार करो ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@..

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...