आदमी को मारता है आदमी ।
जो चाहतों से हारता है आदमी।
खोता है चैन, चैन के वास्ते ,
हसरतों को बुहारता है आदमी।
.....विवेक दुबे"निश्चल"@..
बिन छाँया के विश्राम नही होते ।
बिन आशीषों के काम नही होते ।
न हो हाथ पीठ पर अपनों का ,
तो विजयी समर संग्राम नही होते ।
,...... "निश्चल"@...
राह भटकना तो एक बहाना था ।
मुझको तो तुझ तक आना था ।
खोज रहा था राहों में मंज़िल को,
मुझको ख़ुद में तुझ को पाना था ।
.."निश्चल"@...
आज सा हर कल मिले जरूरी तो नही ।
सुकर्मो का सुफल मिले जरूरी तो नही ।
प्रश्नों की एक किताब सी है ये जिंदगी ,
सारे प्रश्नों का हल मिले जरूरी तो नही ।
.....विवेक दुबे"निश्चल"@....
उजली साँझ भी,गुम होते मुक़ाम सी।
सितारों की चाह में ,चाँद पैगाम सी ।
सफ़र रोशनी भी , स्याह मुक़ाम सी।
ठौर बस रात की,भोर नए मुक़ाम सी।
...."निश्चल"@....
Blog post 9/10/23