शनिवार, 5 दिसंबर 2015

कलम उठती नही


हाँ मैं जादूगर शब्दों का
 मग़र चुप रहता हूँ मैं
 हाँ मैं कलाकार कलम का
 मग़र लिखता नहीं हूँ मैं
 सुनता हूँ बाते दुनियां की
 पड़ता हूँ लोगों की कलम को
  सुन कर बाते दुनियां की
  खामोश रह जाता हूँ
 पढ़ कर कलम लोगो की
 कलम उठती नहीं मेरी
   ....विवेक®...

खोल किवड़िया मन की


खोजा जाने कहां कहां
मन्दिर मस्ज़िद गुरूद्वारे
खोज खोज सब हारे
बस खोले नही किसी ने
अपने मन के दरवाज़े
खोल किवड़िया मन की
जिसने झांका मन के द्वारे
थम गया तब वहीं वो
न भटका फिर द्वारे द्वारे
जगमग जगमग हो उठे
हृदय मन के अंधियारे
....विवेक®....

तू लड़ ज़िगर से


तू लड़ ज़िगर से
तू चल फ़िकर से
धर कदम उस डगर पे
जहा न हों कोई निशां
किसी और के कदम के
अपने रास्ते खुद बना
अपनी मंजिलों को
तू खुद सजा
धर कदम सम्हल के
छोड़ता जा निशां
हर कदम के
कल कह सके दुनियां
कोई गुजरा है इधर से
   ....विवेक®...

बुधवार, 2 दिसंबर 2015

पढ़ने बाले भी मिल जायेंगे


आप लिखते हो दिल से
 पढ़ने बाले भी मिल जायेंगे
आज नही तो कल आयेंगे
सौ नही दो आयेंगे
 पर जो आयेंगे
 सच्चे दिल से आयेंगे
जो अपने कहलायेंगे
    ....विवेक.....

रविवार, 29 नवंबर 2015

कुछ कह जाता हूँ


हाँ मैं कुछ कहता हूँ
 कुछ लिखता हूँ
 कह जाता हूँ बात
 कभी कभी
 किताबों से आंगे
 5/7/15

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...