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जो कुछ उधड़ी सी चिथरन सी ।
वो कुछ रिश्तों की कतरन सी ।
सिसक रही है अब वो नातों में ,
अहसासों की एक चितवन सी ।
सिमट चली है कुछ अरमानों में ,
जानी पहचानी जो अनबन सी ।
उलझ रहे से ताने वाने नातो में ,
कायम है रिश्तों की उलझन सी
जो ख़्याल कहे पिरोकर नज़्मों में ,
वो आवाज़ रही एक सिरहन सी ।
"निश्चल" है संग निग़ाहें अपनो में ,
है ये सर्द बड़ी सँग ठिठरन सी ।
.. विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 6(91)
जो कुछ उधड़ी सी चिथरन सी ।
वो कुछ रिश्तों की कतरन सी ।
सिसक रही है अब वो नातों में ,
अहसासों की एक चितवन सी ।
सिमट चली है कुछ अरमानों में ,
जानी पहचानी जो अनबन सी ।
उलझ रहे से ताने वाने नातो में ,
कायम है रिश्तों की उलझन सी
जो ख़्याल कहे पिरोकर नज़्मों में ,
वो आवाज़ रही एक सिरहन सी ।
"निश्चल" है संग निग़ाहें अपनो में ,
है ये सर्द बड़ी सँग ठिठरन सी ।
.. विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 6(91)