कुछ खास नहीं कवि पिता की संतान हूँ । ..... निर्दलीय प्रकाशन भोपाल द्वारा बर्ष 2012 में "युवा सृजन धर्मिता अलंकरण" से अलंकृत। जन चेतना साहित्यिक सांस्कृतिक समिति पीलीभीत द्वारा 2017 श्रेष्ठ रचनाकार से सम्मानित कव्य रंगोली त्रैमासिक पत्रिका लखीमपुर खीरी द्वारा साहित्य भूषण सम्मान 2017 से सम्मानित "निश्चल" मन से निश्छल लिखते जाओ । ..... . (रचनाये मौलिक स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित .)
शनिवार, 29 सितंबर 2018
सरल छंद
सरल छंद
विधान~[मगण भगण गुरु]
(२२२ २११ २)
७वर्ण,४चरण४
दो-दो चरण समतुकांत]
गीतों को मीत बना ।
भावों में प्रीत सजा ।
सींचो आधे पल को ।
दे दो सारा कल को ।
राहें रोकें पग को ।
छोड़ो मोडे पथ को ।
खोजो राहें जो नव हों ।
सच्चा राही तब हो ।
... विवेक दुबे..
डायरी 5(155)
विधान~[मगण भगण गुरु]
(२२२ २११ २)
७वर्ण,४चरण४
दो-दो चरण समतुकांत]
गीतों को मीत बना ।
भावों में प्रीत सजा ।
सींचो आधे पल को ।
दे दो सारा कल को ।
राहें रोकें पग को ।
छोड़ो मोडे पथ को ।
खोजो राहें जो नव हों ।
सच्चा राही तब हो ।
... विवेक दुबे..
डायरी 5(155)
शुक्रवार, 28 सितंबर 2018
दिगपाल छंद
दिग्पाल छंद
2212 122 2212 122
बंशी बजा रहे हैं ,
कान्हा करें ठिठोली ।
बंशी छुपा रही हैं ,
राधा करें मिचौली ।
राधा कहाँ पुकारे ,
मोहे रहे बिसारे ।
कान्हा छुपा किनारे ,
बंशी लिये निहारे ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@....
2212 122 2212 122
बंशी बजा रहे हैं ,
कान्हा करें ठिठोली ।
बंशी छुपा रही हैं ,
राधा करें मिचौली ।
राधा कहाँ पुकारे ,
मोहे रहे बिसारे ।
कान्हा छुपा किनारे ,
बंशी लिये निहारे ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@....
कुछ कह गया
बहुत कुछ कहा ,कुछ कह गया ।
हर्फ़ हर्फ़ किताबों से, बह गया ।
पलटता रहा सफ़े जिंदगी के ,
हर हुनर निग़ाहों में रह गया ।
देखता रहा मासूमियत चेहरा ,
और उनवान उम्र ढह गया ।(भूमिका)
लाया ना कोई सच जुबां पर ,
हर ज़ुल्म इंसाफ़ सह गया ।
कर ना सकी बयां जुबां जिसे ,
"निश्चल" वो जज्बात हर्फ़ कह गया ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
हर्फ़ हर्फ़ किताबों से, बह गया ।
पलटता रहा सफ़े जिंदगी के ,
हर हुनर निग़ाहों में रह गया ।
देखता रहा मासूमियत चेहरा ,
और उनवान उम्र ढह गया ।(भूमिका)
लाया ना कोई सच जुबां पर ,
हर ज़ुल्म इंसाफ़ सह गया ।
कर ना सकी बयां जुबां जिसे ,
"निश्चल" वो जज्बात हर्फ़ कह गया ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
गुरुवार, 27 सितंबर 2018
दोहे
58
उजली चादर ज्ञान की,
मेले मन को खोय ।
बीज बीज ज्यों छान के,
धरती किसान बोय ।
59
फूटत अंकुर बीज का,
गर्भ धरा का चीर ।
फैलत है वो ज्ञान भी ,
बहकर हृदय नीर ।
60
बीत गया दिन आज का ,
बाँकी कल की आस ।
स्वाति नीर की बूंद को ,
जा चातक की प्यास ।
61
भानू लाया भोर को ,
लिए साँझ की आस ।
साँझ बिसारे भोर को ,
लिए सितारे साथ ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 6
उजली चादर ज्ञान की,
मेले मन को खोय ।
बीज बीज ज्यों छान के,
धरती किसान बोय ।
59
फूटत अंकुर बीज का,
गर्भ धरा का चीर ।
फैलत है वो ज्ञान भी ,
बहकर हृदय नीर ।
60
बीत गया दिन आज का ,
बाँकी कल की आस ।
स्वाति नीर की बूंद को ,
जा चातक की प्यास ।
61
भानू लाया भोर को ,
लिए साँझ की आस ।
साँझ बिसारे भोर को ,
लिए सितारे साथ ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 6
दोहे
54
शिक्षा के प्रयास में ,तुम ना मानो हार ।
शिक्षा ले जाएगी , मति मूढ़ के पार ।
55
शिक्षा के ही ज्ञान से , धनी सदा ही होंय ।
लुट जाये सब काल को,ज्ञान ना लुटे कोय ।
56
शिक्षा ज बड़ी काम की,करे बड़े ये काम ।
लूट न पाये कोउ भी,पूछत ही जो दाम ।
57
शिक्षित तनुजा कीजिये ,पराधीन ना होय ।
आपन साजे ज्ञान से,ज्ञानी जग भी होय ।
... विवेक दुबे"निश्चल@...
डायरी 6
शिक्षा के प्रयास में ,तुम ना मानो हार ।
शिक्षा ले जाएगी , मति मूढ़ के पार ।
55
शिक्षा के ही ज्ञान से , धनी सदा ही होंय ।
लुट जाये सब काल को,ज्ञान ना लुटे कोय ।
56
शिक्षा ज बड़ी काम की,करे बड़े ये काम ।
लूट न पाये कोउ भी,पूछत ही जो दाम ।
57
शिक्षित तनुजा कीजिये ,पराधीन ना होय ।
आपन साजे ज्ञान से,ज्ञानी जग भी होय ।
... विवेक दुबे"निश्चल@...
डायरी 6
कविता
यह रूह बिखर जाने दो ।
ये ज़िस्म सँवर जाने दो ।
इन हसरतों की चाहत में ,
एक उम्र गुजर जाने दो ।
..
बजन कुछ बढ़ जाने दो ।
हसरत ज़िगर भर जाने दो ।
है रूह माफ़िक हवा के ,
संग रूह कर जाने दो ।
...
नर्म निग़ाह खेल दिखाने दो ।
फूल फूल मिल जाने दो ।
बिखरते जज़्बात हवा में ,
फ़िज़ाओं में घुल जाने दो ।
....
थमते नही हालात हाथ हसरतों के ।
सजते नही आज हाथ शोहरातों के ।
कैसी है कशमकश ये वक़्त की ,
होते नहीं आज़ाद हाथ मोहलतों के ।
.... विवेक दुबे"निश्चल@..
ये ज़िस्म सँवर जाने दो ।
इन हसरतों की चाहत में ,
एक उम्र गुजर जाने दो ।
..
बजन कुछ बढ़ जाने दो ।
हसरत ज़िगर भर जाने दो ।
है रूह माफ़िक हवा के ,
संग रूह कर जाने दो ।
...
नर्म निग़ाह खेल दिखाने दो ।
फूल फूल मिल जाने दो ।
बिखरते जज़्बात हवा में ,
फ़िज़ाओं में घुल जाने दो ।
....
थमते नही हालात हाथ हसरतों के ।
सजते नही आज हाथ शोहरातों के ।
कैसी है कशमकश ये वक़्त की ,
होते नहीं आज़ाद हाथ मोहलतों के ।
.... विवेक दुबे"निश्चल@..
मुक्तक 536/540
536
यह निज़ाम कैसा निज़ामों का ।
अपनो से अपनो के बेगानों सा ।
उलझ रहे हैं धागे प्रीत डोर के ,
चिथता दामन तानो बानो का ।
... 537
मची चारो और हलचल है ।
आज से हुआ कल बेदखल है ।
हालात बदलते पल पल में ,
आता नही कल जैसा कल है ।
....538
हमे धोखे ही भा रहे ।
धोखे पर धोखे खा रहे ।
भूला कर आज को ,
हम आज से भरमा रहे ।
...539
शब्द शब्द के पार है ।
अभिव्यक्ति लाचार है ।
जीतता रहा बस वही ,
नियत नेक बेज़ार है ।
... 540
मद की हद है ।
नशा बेहद है ।
पता नही किसी को ,
किसकी क्या हद है ।
विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 3
यह निज़ाम कैसा निज़ामों का ।
अपनो से अपनो के बेगानों सा ।
उलझ रहे हैं धागे प्रीत डोर के ,
चिथता दामन तानो बानो का ।
... 537
मची चारो और हलचल है ।
आज से हुआ कल बेदखल है ।
हालात बदलते पल पल में ,
आता नही कल जैसा कल है ।
....538
हमे धोखे ही भा रहे ।
धोखे पर धोखे खा रहे ।
भूला कर आज को ,
हम आज से भरमा रहे ।
...539
शब्द शब्द के पार है ।
अभिव्यक्ति लाचार है ।
जीतता रहा बस वही ,
नियत नेक बेज़ार है ।
... 540
मद की हद है ।
नशा बेहद है ।
पता नही किसी को ,
किसकी क्या हद है ।
विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 3
मुक्तक 532/535
532
यह रूह बिखर जाने दो ।
ये ज़िस्म सँवर जाने दो ।
इन हसरतों की चाहत में ,
एक उम्र गुजर जाने दो ।
...533
बजन कुछ यूँ बढ़ता गया ।
हसरत ज़िगर धरता गया ।
यूँ तो रूह माफ़िक हवा के ,
पर संग रूह को करता गया ।
...534
एक नर्म निग़ाहों का खेल सा ।
फूल फूल का होता मेल सा ।
बिखरते जज़्बात हवा में,
फ़िज़ाओं से होता मेल सा ।
....535
थमते नही हालात हसरतों के हाथों ।
सजते नही आज शोहरतों के हाथों ।
कैसी यह कशमकश है वक़्त की ,
होते नहीं आज़ाद मोहलतों के हाथों ।
.... विवेक दुबे"निश्चल@..
डायरी 3
यह रूह बिखर जाने दो ।
ये ज़िस्म सँवर जाने दो ।
इन हसरतों की चाहत में ,
एक उम्र गुजर जाने दो ।
...533
बजन कुछ यूँ बढ़ता गया ।
हसरत ज़िगर धरता गया ।
यूँ तो रूह माफ़िक हवा के ,
पर संग रूह को करता गया ।
...534
एक नर्म निग़ाहों का खेल सा ।
फूल फूल का होता मेल सा ।
बिखरते जज़्बात हवा में,
फ़िज़ाओं से होता मेल सा ।
....535
थमते नही हालात हसरतों के हाथों ।
सजते नही आज शोहरतों के हाथों ।
कैसी यह कशमकश है वक़्त की ,
होते नहीं आज़ाद मोहलतों के हाथों ।
.... विवेक दुबे"निश्चल@..
डायरी 3
ये मैं हूं
ये मैं हूँ या वो मैं हूँ ।
वो मैं हूँ के जो मैं हूँ ।
जो मैं हूँ क्या वो मैं हूँ ।
वो मैं हूँ क्या जो मैं हूँ ।
गुंजित मन प्रश्न यही ,
कुछ छूट रहा यही कहीं ।
कुछ पा जाने की चाहत में ,
पाया ठौर नही कहीं ।
अभिलाषा के दिनकर सँग ,
प्रतिफ़ल की साँझ तले ।
ज़ीवन के इस परिपथ पर ,
ज़ीवन की हर साँझ ढ़ले ।
कुछ खोता हूँ, कुछ पाता हूँ ।
कुछ लाता हूँ, कुछ दे आता हूँ ।
पर प्रश्न यही एक मन मे ,
क्या पाता हूँ , क्या खो आता हूँ ।
इस एकाकी जीवन पथ पर ,
एकाकी ही तो आता जाता हूँ ।
एकाकी ही तो आता जाता हूँ ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
वो मैं हूँ के जो मैं हूँ ।
जो मैं हूँ क्या वो मैं हूँ ।
वो मैं हूँ क्या जो मैं हूँ ।
गुंजित मन प्रश्न यही ,
कुछ छूट रहा यही कहीं ।
कुछ पा जाने की चाहत में ,
पाया ठौर नही कहीं ।
अभिलाषा के दिनकर सँग ,
प्रतिफ़ल की साँझ तले ।
ज़ीवन के इस परिपथ पर ,
ज़ीवन की हर साँझ ढ़ले ।
कुछ खोता हूँ, कुछ पाता हूँ ।
कुछ लाता हूँ, कुछ दे आता हूँ ।
पर प्रश्न यही एक मन मे ,
क्या पाता हूँ , क्या खो आता हूँ ।
इस एकाकी जीवन पथ पर ,
एकाकी ही तो आता जाता हूँ ।
एकाकी ही तो आता जाता हूँ ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
एक मुक़ाम
एक मुक़ाम वो भी था ।
एक मुक़ाम यह भी है ।
वो बड़ा आसान था ।
यह नही आसान है ।
लड़ते जंग कदम कदम ,
जिंदगी बनी इम्तेहान है ।
रितते रहे निग़ाहों से ,
फिर जाने क्या गुमान है ।
है नही यह घर किसी का ।
हर शय यहां मेहमान है ।
...विवेक दुबे निश्चल@.
एक मुक़ाम यह भी है ।
वो बड़ा आसान था ।
यह नही आसान है ।
लड़ते जंग कदम कदम ,
जिंदगी बनी इम्तेहान है ।
रितते रहे निग़ाहों से ,
फिर जाने क्या गुमान है ।
है नही यह घर किसी का ।
हर शय यहां मेहमान है ।
...विवेक दुबे निश्चल@.
शेर
मेरे फ़लसफ़े का भी सफ़ा होता ।
मुंसिफ मुझसे यूँ ना ख़फ़ा होता ।
...
उसे जिंदगी से मोहलत नही मिली ।
मुझे जिंदगी से तोहमत यही मिली ।
....
उसे जिंदगी से मोहलत यदि मिलती ।
मुझे जिंदगी से तोहमत नही मिलती ।
....
झूँठ नही तनिक भी, है यही सही ।
जिसे कहा सही, है वही सही नही ।
..
आँख बंद करने से अंधेरा घटता नहीं ।
आता भोर का सबेरा अंधेरा टिकता नही ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
मुंसिफ मुझसे यूँ ना ख़फ़ा होता ।
...
उसे जिंदगी से मोहलत नही मिली ।
मुझे जिंदगी से तोहमत यही मिली ।
....
उसे जिंदगी से मोहलत यदि मिलती ।
मुझे जिंदगी से तोहमत नही मिलती ।
....
झूँठ नही तनिक भी, है यही सही ।
जिसे कहा सही, है वही सही नही ।
..
आँख बंद करने से अंधेरा घटता नहीं ।
आता भोर का सबेरा अंधेरा टिकता नही ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
इस काम ने वो काम दिया
इस काम ने वो काम दिया ।
जिंदगी ने यूँ मुक़ाम दिया ।
खोजते रहे पल फुर्सत के ,
वक़्त ने वो अंजाम दिया ।
खोजतीं चाहत दिल की ,
निग़ाहों ने बदनाम दिया ।
गिरता रहा क़तरा जमीं पर ,
निग़ाह अश्क़ ने पयाम दिया ।
चलता रहा साथ हालात के ,
"निश्चल" क्युं उसे नाम दिया ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
जिंदगी ने यूँ मुक़ाम दिया ।
खोजते रहे पल फुर्सत के ,
वक़्त ने वो अंजाम दिया ।
खोजतीं चाहत दिल की ,
निग़ाहों ने बदनाम दिया ।
गिरता रहा क़तरा जमीं पर ,
निग़ाह अश्क़ ने पयाम दिया ।
चलता रहा साथ हालात के ,
"निश्चल" क्युं उसे नाम दिया ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
सोमवार, 24 सितंबर 2018
रीतता चला हूँ
रीतता चला हूँ ।
सींचता चला हूँ ।
रूठते किनारे ,
डूबता चला हूँ ।
राह राह निहारे ,
खोजता चला हूँ ।
होंसला पुकारे ,
जीतता चला हूँ ।
जिंदगी दुलारे ,
जोश से भरा हूँ ।
आज के सहारे ,
काल से मिला हूँ ।
काल को बिसारे ,
आज को छला हूँ ।
धरा के सहारे ,
आसमाँ गढ़ा हूँ ।
रीतता चला हूँ ।
सींचता चला हूँ ।
.... *विवेक दुबे"निश्चल"@*.
डायरी 5(147)
सराहते हम रहे
सराहते हम रहे ।
बिसारते हम रहे ।
खींच कर निग़ाहों से ,
अक़्स से उभारते हम रहे ।
ये होंसलें तजुर्बों के ,
उम्र से संवारते हम रहे ।
टूटते सितारे फ़लक से,
जमीं को बुहारते हम रहे ।
ख़ाक होते रहे हवा में ,
नज्र से निहारते हम रहे ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@.....
डायरी 5(146)
बिसारते हम रहे ।
खींच कर निग़ाहों से ,
अक़्स से उभारते हम रहे ।
ये होंसलें तजुर्बों के ,
उम्र से संवारते हम रहे ।
टूटते सितारे फ़लक से,
जमीं को बुहारते हम रहे ।
ख़ाक होते रहे हवा में ,
नज्र से निहारते हम रहे ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@.....
डायरी 5(146)
रुठकर लफ्ज़ मेरा
रूठकर लफ्ज़ मेरा कहाँ जाएगा ।
जो है मेरा वो यहाँ आएगा ।
छाएगा जुबां पे नाज से वो ,
एक दिन नज़्म मेरी जहां गाएगा ।
उठेगी हर निग़ाह हसरत से ,
निग़ाह चाहत सा मुक़ा पाएगा ।
तैरते अल्फ़ाज़ समंदर की ख़ातिर,
साथ अपने दरिया बहा लाएगा ।
सर्द रातो में चाहत तपिश की ,
गर्म अल्फ़ाज़ सा धुआँ छाएगा ।
लिए मुक़ाम निग़ाह में कोई ,
"निश्चल"मुक़ाम तक चल जाएगा ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 5(145)
जो है मेरा वो यहाँ आएगा ।
छाएगा जुबां पे नाज से वो ,
एक दिन नज़्म मेरी जहां गाएगा ।
उठेगी हर निग़ाह हसरत से ,
निग़ाह चाहत सा मुक़ा पाएगा ।
तैरते अल्फ़ाज़ समंदर की ख़ातिर,
साथ अपने दरिया बहा लाएगा ।
सर्द रातो में चाहत तपिश की ,
गर्म अल्फ़ाज़ सा धुआँ छाएगा ।
लिए मुक़ाम निग़ाह में कोई ,
"निश्चल"मुक़ाम तक चल जाएगा ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 5(145)
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कलम चलती है शब्द जागते हैं।
सम्मान पत्र
मान मिला सम्मान मिला। अपनो में स्थान मिला । खिली कलम कमल सी, शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई । शब्द जागते...