शुक्रवार, 31 मार्च 2017

कृष्ण मिलन


कृष्ण सा मन चाहिए ।
राधा सा मिलन चाहिए ।
मीरा सा विरह चाहिए।
गोपियों सा आग्रह चाहिए।
कृष्ण मिलन को ,
और क्या चाहिए।..
.......विवेक.......

कन्या भ्रूण


कन्या भ्रूण ने
लगाई गुहार
मुझे न मार
अंश हूँ तेरा
मैं तेरा प्यार
फिर दंश क्यों ?
मत छीन मेरा
जीने का अधिकार
   ...विवेक...

देता है ज़ीवन


देता है जीवन कुछ अपने तरीके से
 फिर भी हर दम एक आस है
 जीवन की इस बहती सरिता में
 रहती घूंट घूंट अधूरी प्यास है
     ....... विवेक .....

चाहत मंज़िल की


हो जाता है बेख्याल बातों बातों में ।
 खोजता है अक्सर कुछ अँधियारो में ।
 चाहत में वो मंज़िल की अपनी ,
 खोज कर राहें, खो जाता है राहों में ।।
  .... विवेक,....

न हो मायूस


न हो मायूस तू दुनियाँ की बातों से
सब्र से बड़ा कोई इम्तेहान नही
वक़्त आएगा तेरा भी एक दिन
वक़्त बीत जाएगा उसका उस दिन
 ....... विवेक .....

क़द्र अपनों की


कद्र करों पहले अपनों की।
फिर फ़िक्र करो न सपनो की।
चलतीं है हर दम संग छाया बन ,
 मिलती हैं जो दुआएँ अपनों की ।
    ..... विवेक .....

रंग सुनहले फागुन के


यह रंग सुनहरे फ़ागुन के
 धुँधले धुँधले बिन साजन के
 टेसू फूले मन भावन से
 झड़ते सूने आँगन में
यह रंग सुनहरे ...
प्रीत के रंग भरे पिचकारी मे
 चुप चाप खड़ी लाचारी मे
 सूने नैना राह तकें राहों मे
 रंग नही अब इन फागों में
  यह रंग सुनहरे ,......
तपता मन चाँदनी रातों में
चँदा चलता ज्यों अंगारों पे
 शीतल बसन्त बयारों में
  साँसे तपतीं साँसों से
यह रंग सुनहरे .....
 ..... विवेक ,.....

शबनम


शब-ए-इंतज़ार में सितारे टिमटिमाते रहे ।
 चाँद बे-ख़ौफ़ खिलखिलाता रहा ।
 रो पड़ी शबनम आकर  जमीं के आगोश में ।
 सहर भी न थी अपने होश में ।
 जो पूछा क्या हुआ जबाब एक आया ।
 तपता है सूरज पिघलते हैं हम ।
 हर बार इल्ज़ाम क्यों हम पर ही आया ।
 ज़माने ने शबनम को क्यों दबाया।
   ...... विवेक .....

फ़िक्र नही मन्ज़िलों की


फ़िक्र नही मन्ज़िलों की , बस राह हम चलें ।
क़दम जिधर पड़ें, रास्ते वहीं  बन पड़ें ।।
मंज़िलो पर  जब क़दम धरें , मंज़िलें भी रास्ता बन पड़ें ।
मंज़िले कहें तड़फ कर , यह मुक़ाम नही तेरा ।।
चल साथ हम भी तेरे चलें ।
 कुछ और रास्ते नए हम गड़ें ।।
   ..... विवेक ...

चलता चल तू चलता चल


चलता चल बस तू चलता चल ।
मंज़िल ख़ुद आएगी पास तेरे चलकर ।
 न देख कभी राहों में मुड़कर पीछे ।
फूल कहीं हों काँटे हों राहों पर ।
 बिसराता चल हर बीता कल ।
 भोर किरण संग आता है सुनहरा कल ।
    ... विवेक .....

सागर का तुम नीर बनो


धीर बनो गम्भीर बनो ।
सागर का तुम नीर बनो ।
लुटती हो मर्यादाएं जब जब,
द्रोपती का तुम चीर बनो ।
देनी हो प्रेम प्यार की परिभाषा,
 तब तब राधा की पीर बनो ।
 धीर बनो गंभीर बनो .....
आते सुख दुःख जब जब ,
तब दुःख को भी अपना लो ,
 सुख की न तुम जागीर बनो ।
 पीकर गरल हलाहल सारा ,
 अमृत की तुम तासीर बनो  ।
 धीर बनो गंभीर बनो ,
 सागर का तुम नीर बनो ।
   ..... विवेक ......

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...