बुधवार, 24 फ़रवरी 2016

न सोचें हम कुछ न सोचो तुम कुछ


न हम सोचें अब कुछ
 न तुम सोचो अब कुछ
 होता है हो जाने दो
 एक गुलामी फिर आने दो
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जलता है देश जल जाने दो
 बंटता है समाज बंट जाने दो
 शकुनि की चलें चल जाने दो
 फिर खण्ड खण्ड हो जाने दो
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जीवित कंस हो जाने दो
 धृतराष्ट्र को स्वप्न सजाने दो
 आयें कृष्ण धरा पर फिर
 आने का एक बहाना दो
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   ••••• विवेक ••••••

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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