न हम सोचें अब कुछ
न तुम सोचो अब कुछ
होता है हो जाने दो
एक गुलामी फिर आने दो
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जलता है देश जल जाने दो
बंटता है समाज बंट जाने दो
शकुनि की चलें चल जाने दो
फिर खण्ड खण्ड हो जाने दो
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जीवित कंस हो जाने दो
धृतराष्ट्र को स्वप्न सजाने दो
आयें कृष्ण धरा पर फिर
आने का एक बहाना दो
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••••• विवेक ••••••
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