शुक्रवार, 10 मार्च 2017

भाग्य


जो प्राप्त है वो भी अपर्याप्त है ।
छीना सुख चैन चाह मे और की ,
 बस कर्म ही हमारा साथ है ।
 भाग्य तो विधाता के हाथ है ।
    ......... विवेक दुबे" निश्चल"@ ............

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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