756
यहाँ तक लिखूँ वहाँ तक लिखूँ ।
जमीन से आसमां तक लिखूँ ।
ये अल्फ़ाज़ है मेरे नज़ाक़त भरे ,
हाल-ए-हक़ीक़त कहाँ तक लिखूँ ।
......
757
मैं यादों को भरमाता रहा ।
खुशियों को आजमाता रहा ।
न ठहरा वक़्त कभी साथ मेरे ,
निशां कदमों पे इठलाता रहा ।
.... ...
758
मैं कुदेरता वक़्त सा रहा ।
लफ्ज़ सँग सख्त सा राह ।
छोड़ता चला पीछे यादों को ,
निग़ाह चश्म मस्त सा रहा ।
.... ...
759
प्रश्न नही वो गया कहाँ पे ।
प्रश्न यही वो आया कहाँ से ।
फेर रहा मन मन के मनके,
माला मोती ड़ोर बंधा कहाँ से।
......
760
जितना इसमें और उसमें अंतर है ।
इतना ही तो बस इसमें अंतर है ।
प्रभु प्राण बसाये काया भीतर ,
मन करता जिसमें अंतर है ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@.
डायरी 3
Blog post 8/6/19
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