शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015

मैं


"मैं" मै क्या कुछ भी नहीं
जब तक "मैं" मै था
तब तक एकाकी एकांत
भटक रहा था "मै"
अपने "मैं" के साथ
जैसे ही छोड़ा मैंने "मैं" को
तुम तुम्हे लिया साथ
बदल गई दुनियां
बदल गए हालात
जाना तब यह
तुम से ही चलते
जग के सारे काज ....
.........विवेक..............
("मै" मेरा अहम् "तुम" मेरी नम्रता )

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