शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015

जिंदगी यह भी


आज हम जी रहे जो जिंदगी
यह आज भी लाखो करोडो के लिए एक सपना हे
पर
फिर भी हम
और के लिए भागे जा रहे हे ....
संतुष्टि को और की चाहत की बलि चड़ा रहे .. ....

संतोष नहीं तो धन केसा...
संतुष्टि नहीं तो माया केसी...
जितना कमाते हे
अपना घर चलाते हे
2 पैसे बचाते हे
हो जाते हे
पूरे सारे काम
सबके दाता राम
इस से ज्यादा
के चक्कर में उलझे जो
तो भैया
पक्का मानो
होगई नींद हराम
जय जय सीता राम
......विवेक.....

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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