बुधवार, 3 जून 2015

बदलते परिदृश्य


उसकी बातो से टूट सी गई माँ निचुड़ सी गई माँ
उसने कहा जब लूँगी अपने फ़ैसले मैं खुद अब
ताकती रही शून्य में माँ सोचती रही बहुत कुछ माँ
शयद यह की अब तक जो फैसलें लिये तेरे लिए
क्या गलत थे वो ..
फिर अगले ही पल आँखें की जोर से बंद
गिरी कुछ आँख से बूंदें पानी की
और अपने कामों में थके क़दमों से लग गई माँ
आज बेटी के इस फ़ैसले से
कितनी बूढ़ी लग रही है माँ
सुनकर इस फैसलें को स्तब्ध है
पिता वो कल तक गर्व करता था जो
मैरी संतान है यह दुनियाँ से कहता था जो ...
.....विवेक.....

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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