रविवार, 22 नवंबर 2015

हम है दूव है हरी भरी ...


हम दूव है हरी भरी
जड़ से जम जाते है
नदिया सा न बह पते है
रौंधे जाते है झुक जाते है
फिर उठ जाते है
सूखे भी जो कहीं कभी
शबनम की बूंदों से ही जी जाते है
नदिया सा न बहा पाते है
हम दूव है हरी भरी .....
....विवेक®....

कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...