बुधवार, 25 मई 2016

नहीं परवाह


नहीं परवाह मान की सम्मान की ।
फ़िक्र है मुझे बस स्वाभिमान की ।
मैं नहीं मांगता दुनियाँ से कुछ भी ,
उसे तो फ़िक्र है दोनों जहान की ।
...... विवेक .....

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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