शनिवार, 8 अप्रैल 2017

प्रकट राम तब होते है


कन्टक पथ पर चलना होता है ।
सत्य साथ के होना होता है ।
       धर धैर्य हृदय में सह कष्टों को ,
       हृदय प्रकट राम तब होता है ।
  विजय त्रिलोकपति पर पाकर
 राज्य विभीषण को देना होता है
       सुनकर एक पुकार किसी की
       सीता को भी खोना होता है
  वचन भंग न हो जाए पिता के
 वन वासी तब होना होता है
       खाकर जूठे बेर शबरी के
     शत्रु को भी पूज्य कहना होता है
 जीता जब स्वयं ने स्वयं को
 हृदय प्रकट राम तब होता है
   ..... विवेक ....

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