शनिवार, 8 अप्रैल 2017

कहती है कलम नया

क्या कुछ कहती है कलम नया ।
खुशियों के लम्हे या हो ग़म नया ।
 डुबा कर कलम दिल की ,
 जज्वातों की स्याही से ,
 बस कर दो सब वयां ।
 रंग चढ़ें बिरह वेदना के ,
  मधुर मिलन का रंग चढ़ा ।
  जज्बातों की स्याही से ,
  सब कर दो सब वयां ।
  हों आशाएं अभिलाषाएँ ,
  या हो घोर निराशाएँ ,
  सब को देदो रंग जरा ।
 जज्बातों की स्याही से ,
 बस कर दो सब वयां ।
  ..... विवेक दुबे "निश्चल"@ ...


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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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