क्या कुछ कहती है कलम नया ।
खुशियों के लम्हे या हो ग़म नया ।
डुबा कर कलम दिल की ,
जज्वातों की स्याही से ,
बस कर दो सब वयां ।
रंग चढ़ें बिरह वेदना के ,
मधुर मिलन का रंग चढ़ा ।
जज्बातों की स्याही से ,
सब कर दो सब वयां ।
हों आशाएं अभिलाषाएँ ,
या हो घोर निराशाएँ ,
सब को देदो रंग जरा ।
जज्बातों की स्याही से ,
बस कर दो सब वयां ।
..... विवेक दुबे "निश्चल"@ ...
खुशियों के लम्हे या हो ग़म नया ।
डुबा कर कलम दिल की ,
जज्वातों की स्याही से ,
बस कर दो सब वयां ।
रंग चढ़ें बिरह वेदना के ,
मधुर मिलन का रंग चढ़ा ।
जज्बातों की स्याही से ,
सब कर दो सब वयां ।
हों आशाएं अभिलाषाएँ ,
या हो घोर निराशाएँ ,
सब को देदो रंग जरा ।
जज्बातों की स्याही से ,
बस कर दो सब वयां ।
..... विवेक दुबे "निश्चल"@ ...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें