गुरुवार, 10 मई 2018

अपनी अपनी मर्ज़ी

अपनी अपनी मर्जी  ।
अपना अपना मन  ।

 बदली के छा जाने से ,
 आता नही सावन । 

 धरती भींगे वर्षा बूंदों से ,
 भींगे न फिर भी मन ।

 फूलों के खिल जाने से ,
 खिलता नही गुलशन ।

  तप्त धरा अंगारों सी ,
 शीतल फिर भी रही पवन ।

 मधु मास के आने से ,
 आता नही यौवन ।

  जन्मा जीवन की खातिर ,
  लेकर जन्मों के बंधन ।

 एक राह रुक जाने से ,
  रुका नही जीवन ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@....

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