शनिवार, 12 मई 2018

सूरज की साँझ तले


सूरज की साँझ तले ,
 नया सबेरा गढ़ते है ।
 गिरकर जो फिर उठ ,
 भोर तले चल पड़ते हैं ।

 जीवन पथ के अवसादों से ,
 निर्भीक सदा रहा करते हैं ।
 कंटक पथ पर चलकर जो ,
 नव चेतन सृजन करा करते है ।

धेय्य यही बस बढ़ते रहना ,
 वो विश्राम कहाँ करते हैं ।
 वो सूरज की साँझ तले ,
 फिर नया सबेरा गढ़ते हैं ।

   ..... विवेक दुबे"निश्चल"@..

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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