सोमवार, 15 अक्तूबर 2018

नव पथ बढ़ना

अहीर  छंद
11 
 रूठ गए सब तब भी।
 मान गए हम जब भी ।
          रीत प्रीत आन की ।
          सीख यही प्राण की ।

जीत तले साँझ सी ।
सिद्ध नही बिश्राम सी ।
             भोर फिर संग्राम की ।
              नव पथ आयाम की ।

आता गया रुकना ।
  भावों सँग झुकना ।
             हार नही थकना ।
             बात यही कसना ।

   जीत तले न रुकना ।
   सिद्ध हुए न बिकना ।
              लक्ष्य नए फिर गढ़ना ।
              नित्य नव पथ बढ़ना ।

... *विवेक दुबे"निश्चल"*@..

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