221 2121 1 22 1 212
महदूद ही रहा कुछ,ख्यालो में ख़्वाब से ।
लिपटा रहा यही कुछ, अल्फ़ाज़ ताव से ।
जो हाथ था उठा कल,नज़्र ओ अंदाज का ।
देता रहा दुआ दिल , वो ही अदाब से ।
गजलों में काफ़िया मतला जो जुवां मिला ,
आता रहा लबों तक वो ही रुआब से ।
ढूंढा करा नसीब जहां में कहाँ कहाँ ,
उस संग सी निग़ाह ने चाहा हिसाब से ।
थोड़ी सि हसरते गढता ही गया सदा
देता रहा दुआ युं नवाज़ा खिताब से ।
छोटा नही जहां यह तेरे भी वास्ते ,
"निश्चल"यहाँ चला चल राहे कसाव से ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@.....
महदूद ही रहा कुछ,ख्यालो में ख़्वाब से ।
लिपटा रहा यही कुछ, अल्फ़ाज़ ताव से ।
जो हाथ था उठा कल,नज़्र ओ अंदाज का ।
देता रहा दुआ दिल , वो ही अदाब से ।
गजलों में काफ़िया मतला जो जुवां मिला ,
आता रहा लबों तक वो ही रुआब से ।
ढूंढा करा नसीब जहां में कहाँ कहाँ ,
उस संग सी निग़ाह ने चाहा हिसाब से ।
थोड़ी सि हसरते गढता ही गया सदा
देता रहा दुआ युं नवाज़ा खिताब से ।
छोटा नही जहां यह तेरे भी वास्ते ,
"निश्चल"यहाँ चला चल राहे कसाव से ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@.....
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