मंगलवार, 21 मई 2019

ग़जल

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महदूद ही रहा कुछ,ख्यालो में ख़्वाब से ।
लिपटा रहा यही कुछ, अल्फ़ाज़ ताव से ।

जो हाथ था उठा कल,नज़्र ओ अंदाज का ।
देता रहा दुआ दिल , वो ही अदाब से ।

 गजलों में काफ़िया मतला जो जुवां मिला ,
 आता रहा लबों तक वो ही रुआब से ।

ढूंढा करा नसीब जहां में कहाँ कहाँ ,
उस संग सी निग़ाह ने चाहा हिसाब से ।

 थोड़ी सि हसरते गढता ही गया सदा
 देता रहा दुआ युं नवाज़ा खिताब से ।

 छोटा नही जहां यह तेरे भी वास्ते ,
"निश्चल"यहाँ चला चल राहे कसाव से ।
  
.... विवेक दुबे"निश्चल"@.....

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