सोमवार, 15 अगस्त 2022

ये परचम जो लहराया है

 


ये परचम जो लहराया है ।

राष्ट्रबाद लेकर आया है ।


भोर सुनहरी किरणो सँग,

सूरज भी इतराया है ।

नवल धवल पवन चले ,

मकरंद भरा झोंका आया है ।


ये परचम जो लहराया है ।

राष्ट्रबाद लेकर आया है ।


चमक रहीं किरणें चँदा की ,

निशि ने खुद को बौराया है ।

दमक रहा हिमालय भी ,

सागर को आँचल में लाया है ।


ये परचम जो लहराया है ।

राष्ट्रबाद लेकर छाया है ।


नव चेतन जन मन में ,

जन ने जन को जगाया है ।

हर घर पर फहराता तिरंगा ,

चहु और तिरंगा छाया है ।


ये परचम जो लहराया है ।

राष्ट्रबाद लेकर छाया है ।


बड़ा नही कुछ मातृभूमि से ,

ये संदेशा आज सुनाया है ।

एक साथ खड़े हम दृणता से ,

दुनियाँ को आज दिखाया है ।


 ये परचम जो लहराया है ।

राष्ट्रबाद लेकर आया है ।


...विवेक दुबे"निश्चल"@....

डायरी 7


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