ये परचम जो लहराया है ।
राष्ट्रबाद लेकर आया है ।
भोर सुनहरी किरणो सँग,
सूरज भी इतराया है ।
नवल धवल पवन चले ,
मकरंद भरा झोंका आया है ।
ये परचम जो लहराया है ।
राष्ट्रबाद लेकर आया है ।
चमक रहीं किरणें चँदा की ,
निशि ने खुद को बौराया है ।
दमक रहा हिमालय भी ,
सागर को आँचल में लाया है ।
ये परचम जो लहराया है ।
राष्ट्रबाद लेकर छाया है ।
नव चेतन जन मन में ,
जन ने जन को जगाया है ।
हर घर पर फहराता तिरंगा ,
चहु और तिरंगा छाया है ।
ये परचम जो लहराया है ।
राष्ट्रबाद लेकर छाया है ।
बड़ा नही कुछ मातृभूमि से ,
ये संदेशा आज सुनाया है ।
एक साथ खड़े हम दृणता से ,
दुनियाँ को आज दिखाया है ।
ये परचम जो लहराया है ।
राष्ट्रबाद लेकर आया है ।
...विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 7
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