स्वाभिमानी की लालिमा,
दमक रही है भारत के भाल पे ।
प्रफुल्लित है जन गण मन,
बदले से इस हाल पे ।
कर करता है अब यह बातें अपनी ,
आंखों में आंखें डाल के।
स्वाभिमान की लालिमा,
दमक रही है भारत के भाल पे।
सहम रहा है हर शत्रु,
इसकी शेरों जैसी चाल से ।
कुचल रहा है अब सारे विषधर ,
आस्तीन में जो रखे थे पाल के ।
मूक नहीं है अब यह माटी ,
गर्जन करती विपुल विशाल से ।
निरीह ही नहीं है अब हम ,
जीते हैं हम अपने ही ख्याल से ।
सहम रहा है हर शत्रु "निश्चल"",
इस भारत माता के लाल से ।
स्वाभिमान की लालिमा ...
विवेक दुबे निश्चल
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