सोमवार, 15 अगस्त 2022

अमृत महोत्सव

स्वाभिमानी की लालिमा,

दमक रही है भारत के भाल पे ।

प्रफुल्लित है जन गण मन,

   बदले से इस हाल पे ।

 कर करता है अब यह बातें अपनी ,

आंखों में आंखें डाल के।

 स्वाभिमान की लालिमा,

 दमक रही है भारत के भाल पे।

सहम रहा है हर शत्रु,

 इसकी शेरों जैसी चाल से ।

कुचल रहा है अब सारे विषधर ,

आस्तीन में जो रखे थे पाल के ।

 मूक नहीं है अब यह माटी ,

गर्जन करती विपुल विशाल से ।

निरीह ही नहीं है अब हम ,

जीते हैं हम अपने ही ख्याल से ।

सहम रहा है हर शत्रु "निश्चल"",

 इस भारत माता के लाल से ।

स्वाभिमान की लालिमा ...

विवेक दुबे निश्चल







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