1048
एक राह मुसलसल तू चला चल ।
राह की ठोकरों से तू मिला चल ।
न कर गुमान हुनर के गुरुर पर ,
तू होंसले रास्तों को दिला चल ।
माना नही मंजिल नसीब में उसके ,
इरादों को तू उसके न हिला चल ।
...."निश्चल"@..
1049
खो रहा कल में आज है ।
सुर कही तो कही साज है ।
है मुक़ाम पर मुक़ाम से दूरी ,
जिंदगी का यही तो राज है ।
...."निश्चल"@.
1050
जब कल गुजर जाता है ।
तब कल नजर आता है ।
चला है मुसलसल सफ़र,
अब कल किधर लाता है ।
..."निश्चल"@..
1051
हँसी का हर हिसाब ले गया ।
यूँ वक़्त अपना रुआब दे गया ।
खो गई हक़ीक़त दुनियाँ की भीड़ में,
सफर हर मोड़ पर ठहराब दे गया ।
...विवेक दुबे"निश्चल"@...
Blog post 4/4/23
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