मंगलवार, 4 अप्रैल 2023

तू चला चल

 1048

एक राह मुसलसल तू चला चल ।

राह की ठोकरों से तू मिला चल ।

न कर गुमान हुनर के गुरुर पर ,

तू होंसले रास्तों को दिला चल ।

माना नही मंजिल नसीब में उसके ,

इरादों को तू उसके न हिला चल ।

...."निश्चल"@..

1049

खो रहा कल में आज है ।

सुर कही तो कही साज है ।

है मुक़ाम पर मुक़ाम से दूरी ,

जिंदगी का यही तो राज है ।

...."निश्चल"@.

1050

जब कल गुजर जाता है ।

तब कल नजर आता है ।

चला है मुसलसल सफ़र,

अब कल किधर लाता है ।

..."निश्चल"@..

1051

 हँसी का हर हिसाब ले गया ।

यूँ वक़्त अपना रुआब दे गया ।

खो गई हक़ीक़त दुनियाँ की भीड़ में,

 सफर हर मोड़ पर ठहराब दे गया ।

    ...विवेक दुबे"निश्चल"@...

Blog post 4/4/23

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