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कुछ गलत भी चाहिए,कुछ सही के लिए ।
हालात से बदल जाइए , ज़िंदगी के लिए ।
कटते नहीं अंधेरे, अश्क़ निग़ाह लिए हुए ।
एक तबस्सुम भी चाहिए, तिश्निगी के लिए ।
पड़ते नही है हर क़दम, जीत लिए हुए ।
होंसला हार भी चाहिए,जीतने के लिए ।
उभरे हुए अंगार नक्स कुछ, वर्फ़ से हुए ।
एक निगाह आग चाहिए,पिघलने के लिए ।
हवा किनारे है दरिया के,मौजें लिए हुए।
नशा लहर भी चाहिए , मचलने के लिए ।
कटता नही सफ़र गुमनामी का"निश्चल" ।
शोहरते शेर भी चाहिए,निखरने के लिए ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@.....
Blog post 29/8/18 डायरी 7
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