शनिवार, 5 दिसंबर 2015

तू लड़ ज़िगर से


तू लड़ ज़िगर से
तू चल फ़िकर से
धर कदम उस डगर पे
जहा न हों कोई निशां
किसी और के कदम के
अपने रास्ते खुद बना
अपनी मंजिलों को
तू खुद सजा
धर कदम सम्हल के
छोड़ता जा निशां
हर कदम के
कल कह सके दुनियां
कोई गुजरा है इधर से
   ....विवेक®...

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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