रविवार, 6 दिसंबर 2015

शब्दों का तम


हर ले तू शब्दों के तम ।
 उजियारा भर हर दम ।
                 थाम कर कलम ,
                 कर नव सृजन ।
हर पल हर दम ।
उकेर पीड़ाओं को भी ,
        जीवन रंग में डुबो कलम ।
         हर ले तू शब्दों के तम ।
अवसादों और निराशाओं को ।
छू कर उन अभिलाषाओं को।
     आशाओं से खुशियों के भाव बना ।
     अपने हृदय मन उदगार उठा।
शब्दों का फिर आकार सजा ।
         तू लिखता जा तू लिखता जा ।
        हर पल हर क्षण कर बस सृजन ।

हर ले तू शब्दों के तम ।
  कर सृजन तू कर सृजन ।
...... विवेक दुबे "निश्चल"@.....

ब्लॉग पोस्ट 10/10/17

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