हर ले तू शब्दों के तम ।
उजियारा भर हर दम ।
थाम कर कलम ,
कर नव सृजन ।
हर पल हर दम ।
उकेर पीड़ाओं को भी ,
जीवन रंग में डुबो कलम ।
हर ले तू शब्दों के तम ।
अवसादों और निराशाओं को ।
छू कर उन अभिलाषाओं को।
आशाओं से खुशियों के भाव बना ।
अपने हृदय मन उदगार उठा।
शब्दों का फिर आकार सजा ।
तू लिखता जा तू लिखता जा ।
हर पल हर क्षण कर बस सृजन ।
हर ले तू शब्दों के तम ।
कर सृजन तू कर सृजन ।
...... विवेक दुबे "निश्चल"@.....
ब्लॉग पोस्ट 10/10/17
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