मधु मास आया है
कलियों पर यौवन छाया है
भंवरों से मिलने को
आतुर कलीयों की काया है
--
आज मन बौराया है
भंवरों ने प्रणय गान गया है
धरा सजी दुल्हन सी
देख गगन भी शरमाया है
----
देख श्रंगार धरा का
चन्दा ने खुद को पिघलाया है
पुष्पित सुरभित आज धरा
चन्दा ने प्रणय रस बरसाया है
---
..... विवेक ....
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें