सोमवार, 6 जून 2016

इंसानो में भगवान ढूँढता हूँ


1--
इंसानो में भगवान ढूँढता हूँ ।
 दुनियाँ में ईमान ढूँढता हूँ ।
 लूटाकर में खुशियाँ सब अपनी ,
 चेहरों पर मुस्कान ढूँढता हूँ ।
    .... विवेक ....
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2--
छूट रहा है कुछ साँझ ढले ।
भूल रहा हूँ कुछ भोर तले ।
जीवन की इस आपाधापी में ,
कैसे इस मन को ठौर मिले ।
.... विवेक .......
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3---
हम वो किताब ढूँढते रहे ।
रिश्तों के हिसाब ढूँढते रहे ।
मुक़द्दर में नहीं थे जो रिश्ते ,
उन रिश्तों के नक़ाब ढूँढते रहे ।
    .... विवेक ...

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