शनिवार, 11 नवंबर 2017

संकलन 3


भूख की पीड़ा

1-
   वेदना उसकी बड़ी भारी थी ।
   भूख जिसकी एक लाचारी थी ।
   बीनता था जूठन वो बचपन , 
   और निगाहें उसकी आभारी थीं ।

2-
 भूख दौलत की बढ़ती गई,भूख रोटी की घटती गई ।
 रोटी की फ़िक्र में जो ,कमाने निकला था कभी ।।
3
भूख रहे अधरन पे ,प्यास रहे मन मे ।
 कलम कहे सब कुछ,बहुत कम शब्दन में ।।
  

 कलम चली है बस कुछ ही शब्दों पर ,
लेखन को शब्दों में न बाँध सके कोई ।
 कलम पीड़ा भूखी सदा शब्दों है की ,
  शब्दों से पार पा सके न कभी कोई ।

5
भूख नही तो जग न होता ।
 तब कोई रिश्ता न होता ।
 हर रिश्ता जन्मा पीड़ा से,
 पीड़ा से मन भूखा होता ।

 6
 भूख नही तो पीड़ा कैसी ।
  हर रिश्ता हर दौलत कैसी ।
   जगती है भूख जब मन मे,
  तब रुकने की चाहत कैसी ।

7
 चलता है तू *निश्चल* भाव से,
 फिर मन यह पीड़ा है कैसे।
  भूख जो न होती शब्दों की ,
 फिर यह कलम उठती कैसे ।
  
   खोया अपने आप में 
 उलझा कुछ हालात में 
 मिज़ाज़ कुछ नरम गरम
 खोजता मर्ज-ऐ-इलाज़ मैं 
  .

 ठीक नही अब कुछ
 बिगड़ चला अब कुछ 
 जीता था लड़कर जो
 थक हार चला अब कुछ 
  ...

 लिखता था जो हालात को ।
 कहता था जो ज़ज्बात को।
 बदलता गया समय सँग सब ,
 बदल उसने भी अपने आप को ।
 .....

 मन विश्वास हो स्नेहिल *आस* हो ।
 तपती रेत भी शीतल आभास हो ।
 जीत लें कदम दुनियाँ को तब,
 हृदय मन्दिर प्रभु कृपा प्रसाद हो  ।
 ....

कोई किसी से नही कमतर है ।
  हर शाख पे एक कबूतर है । 
 खोया अपने मस्त ख़यालों में,
  बन्द आँखे करता गुटर गुटर है ।
  .....

 साहिल को ही सागर हाँसिल है ।
 जो सहता सागर की हलचल है ।
.... 

 जिंदगी मिली जरा जरा ।
 जी  लें हम जरा जरा ।
 बाँट लें ग़म जरा जरा।
 बाँट दें ख़ुशी जरा जरा ।

 .... "निश्चल" विवेक दुबे....©

कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...