शनिवार, 11 नवंबर 2017

संकलन 2



  सिकतीं यादें प्यार की,
  अहसास के कड़ाव पर ।
  .... 
तू ही निर्मल ,
                    तू ही पवन ,
  तू ही गंगाजल ,
                 ऐसा माता तेरा आँचल।
 तेरे वक्षों से जो अमृत बहे,
            दुनियाँ उसको सौगन्ध कहे ।
 तेरे पावन स्नेह स्पर्श से,
                  त्रिदेव भी अभिभूत भए ।
 मेरी अँखियाँ तेरी अँखियाँ,
                 मेरी निंदिया तेरी निंदिया ।
  सुध-बुध खोती मेरी खातिर,
                        मेरे कष्टों से न दूर रहे ।
  जगत विधाता भी बस ,
                      माँ को ही सम्पूर्ण कहें ।
     .....
आशा के सागर से दो बूंद चुरा लाओ ।
 आओ तुम भी साहिल पर आ जाओ ।
  ...
इस धनतेरस कुछ खास करें।
बुद्धि अन्तर्मन बर्तन साफ़ करें ।

 ज्ञान रूप धन भर कर,
 लक्ष्मी का आह्वान करें ।

 भुला राग, द्वेष ,बैर, सभी ,
 प्रेम, शान्ति का श्रृंगार करें ।

 हृदय चैतन्य दीप जलाकर,
 सम्पूर्ण विश्व दिव्य ज्योत बनें ।
    ...... 
  *मंगलम सुमङ्गल धनाध्यक्ष कुबेरं ।*
  *आगमन स्वागतं धनाध्यक्ष कुबेरं ।।*
            .... 
 कुछ बातें बंद लिफाफों सी।
 कुछ अनसुलझे वादों सी।
  उलट पलट कर देखा पर ,
 तारों सँग अंधियारी रातों सी ।
 ..... 
 अंधेरों ने अंधेरों को यूँ लुभाया है ।
 उजालों को भी अंधेरा भाया है। 
 जल कर दीपक ने रात भर , 
नीचे अपने अँधेरा छुपाया है ।
  ....
 भाव खो गए भाबों में।
 वादे भूले सब यादों में ।
 हर रिश्ता तो     अब ,
 बिकता है बाज़ारों में। 

     चकाचोंध की इस दुनियाँ में ।
 होता है सब कुछ अँधियारों में ।
  सूरज भी अब तो अक़्सर, 
  सोता है तमस के गलियारों में ।
 ...
 जबसे मैं मशहूर हुआ ।
 अपनो से मैं दूर हुआ ।
  पीकर प्याला शोहरत का,
   मैं बहुत मायूस हुआ ।
  ...
 *मंगलम सु-मंगलम* 

 *अंधकार निवारणं दीप प्रकाशकम ।*
 *वंदे श्रीहरि श्रीनिधि फल प्रदायनम ।।*

अबकी दीवाली कुछ ऐसे दीप सजाऊंगा ।
 यादों की बाती रख यादो के दीप जलाऊंगा । 
 होंगे उजियारे मध्यम मध्यम तिमिर संग ,
 हो प्रकशित मन तिमिर दूर भगाऊंगा ।




 तेल भरूंगा नव सम्भावनाओं का मैं ।
मन उज्वल नवल प्रकाश जगाऊंगा ।
  खोजूंगा फिर गहन अनन्त आकाश मैं ।
 अबकी दीवाली कुछ ऐसे दीप जलाऊंगा ।
  .... 
 कुछ शुभ कामनाएँ मेरी हों ।
कुछ शुभ कामनाएँ तेरी हों ।
 जगमग हों राहें जीवन पथ की,
 फिर रात भले ही अँधेरी हो।
   .....
 दूर कर प्रकाश से अंधकार को ।
 जीत साहस से अत्याचार को । 
 न हार कभी अपने विश्वास को ।
 जीत ले फिर समूचे आकाश को ।
  ....
कुछ ऐसे नए दीप जलाएँ।
आशाओ के उजियारे आएँ ।
दीप भले ही कल बुझ जाएँ।
आशायें जगमग होती जाएँ ।
 रंगोली कुछ यूँ सज जाएँ।
सदभाव के रंग भर जाएँ ।

....  सु-मङ्गलम् दीपावली ....

 दीवाली की रात निराली ।
 उजियारों से निशा हारी ।
          उजियारों की खातिर ,
         दिये सँग जलती बाती ।
     ..... 
 जलता रहा मैं औरों की ख़ातिर ।
 में अपने नीचे अँधेरा समेटे हुए ।
  
बुझाकर चराग दिल के मैंने।
 जलाए ज़ख्म दिल के मैंने।
   
जलता रहा मैं औरों की ख़ातिर ।
 में अपने नीचे अँधेरा समेटे हुए ।
  
मिटकर खुद तिमिर हरे अंधेरों का ।
 सूरज वही है नव प्रभात सबरों का ।
   ...."निश्चल" विवेक दुबे....

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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