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सिकतीं यादें प्यार की,
अहसास के कड़ाव पर ।
....
तू ही निर्मल ,
तू ही पवन ,
तू ही गंगाजल ,
ऐसा माता तेरा आँचल।
तेरे वक्षों से जो अमृत बहे,
दुनियाँ उसको सौगन्ध कहे ।
तेरे पावन स्नेह स्पर्श से,
त्रिदेव भी अभिभूत भए ।
मेरी अँखियाँ तेरी अँखियाँ,
मेरी निंदिया तेरी निंदिया ।
सुध-बुध खोती मेरी खातिर,
मेरे कष्टों से न दूर रहे ।
जगत विधाता भी बस ,
माँ को ही सम्पूर्ण कहें ।
.....
आशा के सागर से दो बूंद चुरा लाओ ।
आओ तुम भी साहिल पर आ जाओ ।
...
इस धनतेरस कुछ खास करें।
बुद्धि अन्तर्मन बर्तन साफ़ करें ।
ज्ञान रूप धन भर कर,
लक्ष्मी का आह्वान करें ।
भुला राग, द्वेष ,बैर, सभी ,
प्रेम, शान्ति का श्रृंगार करें ।
हृदय चैतन्य दीप जलाकर,
सम्पूर्ण विश्व दिव्य ज्योत बनें ।
......
*मंगलम सुमङ्गल धनाध्यक्ष कुबेरं ।*
*आगमन स्वागतं धनाध्यक्ष कुबेरं ।।*
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कुछ बातें बंद लिफाफों सी।
कुछ अनसुलझे वादों सी।
उलट पलट कर देखा पर ,
तारों सँग अंधियारी रातों सी ।
.....
अंधेरों ने अंधेरों को यूँ लुभाया है ।
उजालों को भी अंधेरा भाया है।
जल कर दीपक ने रात भर ,
नीचे अपने अँधेरा छुपाया है ।
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भाव खो गए भाबों में।
वादे भूले सब यादों में ।
हर रिश्ता तो अब ,
बिकता है बाज़ारों में।
चकाचोंध की इस दुनियाँ में ।
होता है सब कुछ अँधियारों में ।
सूरज भी अब तो अक़्सर,
सोता है तमस के गलियारों में ।
...
जबसे मैं मशहूर हुआ ।
अपनो से मैं दूर हुआ ।
पीकर प्याला शोहरत का,
मैं बहुत मायूस हुआ ।
...
*मंगलम सु-मंगलम*
*अंधकार निवारणं दीप प्रकाशकम ।*
*वंदे श्रीहरि श्रीनिधि फल प्रदायनम ।।*
अबकी दीवाली कुछ ऐसे दीप सजाऊंगा ।
यादों की बाती रख यादो के दीप जलाऊंगा ।
होंगे उजियारे मध्यम मध्यम तिमिर संग ,
हो प्रकशित मन तिमिर दूर भगाऊंगा ।
तेल भरूंगा नव सम्भावनाओं का मैं ।
मन उज्वल नवल प्रकाश जगाऊंगा ।
खोजूंगा फिर गहन अनन्त आकाश मैं ।
अबकी दीवाली कुछ ऐसे दीप जलाऊंगा ।
....
कुछ शुभ कामनाएँ मेरी हों ।
कुछ शुभ कामनाएँ तेरी हों ।
जगमग हों राहें जीवन पथ की,
फिर रात भले ही अँधेरी हो।
.....
दूर कर प्रकाश से अंधकार को ।
जीत साहस से अत्याचार को ।
न हार कभी अपने विश्वास को ।
जीत ले फिर समूचे आकाश को ।
....
कुछ ऐसे नए दीप जलाएँ।
आशाओ के उजियारे आएँ ।
दीप भले ही कल बुझ जाएँ।
आशायें जगमग होती जाएँ ।
रंगोली कुछ यूँ सज जाएँ।
सदभाव के रंग भर जाएँ ।
.... सु-मङ्गलम् दीपावली ....
दीवाली की रात निराली ।
उजियारों से निशा हारी ।
उजियारों की खातिर ,
दिये सँग जलती बाती ।
.....
जलता रहा मैं औरों की ख़ातिर ।
में अपने नीचे अँधेरा समेटे हुए ।
बुझाकर चराग दिल के मैंने।
जलाए ज़ख्म दिल के मैंने।
जलता रहा मैं औरों की ख़ातिर ।
में अपने नीचे अँधेरा समेटे हुए ।
मिटकर खुद तिमिर हरे अंधेरों का ।
सूरज वही है नव प्रभात सबरों का ।
...."निश्चल" विवेक दुबे....
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