शनिवार, 11 नवंबर 2017

संकलन 1


   *ॐ* हृदय रखिए ,
 *ॐ* करे शुभ काज ।
 *ॐ* श्रीगणेश है,
 *ॐ* शिव सरकार ।
  .....

 नैतिकता पढ़ी कभी किताबों में ।
  नैतिकता मिलती नही बाज़ारों में ।
  सुनते आए किस्से बड़े सयानों से,
  यह मिलती घर आँगन चौवरो में ।
  ...... 
 बून्द चली मिलने सागर तन से ।
 बरस उठी बदली बन गगन से ।
 क्षितरी बार बार बिन साजन के ।
 बहती चली फिर नदिया बन के ।
 एक दिन *बून्द प्यार की* जा पहुँची ,
 मिलने साजन सागर के तन से ।
....... 
 तन्हा वक़्त छीन रहा बहुत कुछ ।
 हँसी लेकर वक़्त दे रहा सब कुछ ।

  .....
 वो लालसा बड़ी न्यारी जागी थी ।
 सौंपी अपने घर की चाबी थी ।
 लालच में आकर हमने जिसको ।
 उसने ही की चोरों की सरदारी थी ।
  ....
जीवन रेखा रेल भी हारी है ।
 यह जाने कैसी लाचारी है ।
 हो रही बे-पटरी बेचारी है ।
 राजशाही व्यवस्था पर भारी है । 

...... *जीवन संगनी*  ....

   रागनी तू अनुगामनी तू।
   राग तू अनुरागनी तू ।
               चारणी तू सहचारणी तू।
               शुभ तू शुभगामनी तू।
  नैया तू पतवार तू ।
  सागर तू किनार तू ।
                    प्रणय प्रेम फुहार तू ।
                    प्रकृति सा आधार तू ।              
 प्रीत का प्रसाद तू ।
 सुखद सा प्रकाश तू ।     
               खुशियों का आकाश तू।
              *"विवेक"* का विश्वास तू ।
  
 एक आस है उस चाँद की तलाश है ।
 एक प्यास है यह चाँद ही अहसास है ।
        ....
 वो इठलाता है आसमां पे ।
 एक चाँद है जो आसमां पे ।
 उतरता नहीं कभी जमीं पे ।
  शर्माता है क्यों सुबह से ।
  ..
आया चंद्र पूर्व के छोर से ।
  देखूँ मैं साजन की ओट से ।
   बाँध अँखियन के पोर से ।
   मन हृदय विश्वास डोर से ।

चौथ चंद्र खिला है ,
 निखरा निखरा है ।
 एक चंद्र गगन में ,
 एक मन आँगन में।
  जीती है जिसको वो,
  पल पल प्रतिपल में।
   श्रृंगारित तन मन से,
   प्रण प्राण प्रियतम के । 
     देखत रूप पिया का,
    चंद्र गगन अँखियन से।

 .....
 सफ़र ज़रा मुश्किल था ।
 वो पत्थर नही मंज़िल था ।
 निशां न थे कहीं क़दमों के ,
 हौंसला फिर भी हाँसिल था ।
 ....
 सहना नियति मानस की, सहती सब अत्याचार ।
 शेष न इच्छा प्रतिकार की, बैठी बस चुप चाप ।
 .... 
वादों के शूलों से ज़ख्म क़ुदरते हैं ।
 वो कुछ यूँ मेरे जख्म उकेरते हैं।
 ....
 सहना नियति मानस की, सहती अत्याचार ।
 इच्छा न प्रतिकार की, बैठी बस चुप चाप ।।
 .....
 हाँ समय बदलते देखा है ।
सूरज को ढ़लते देखा है ।
 चन्दा को घटते देखा है ।
 तारों को गिरते देखा है ।
 हाँ समय बदलते देखा है ।
 हिमगिरि पिघलते देखा है ।
 सावन को जलते देखा है ।
 सागर को जमते देखा है ।
 नदियां को थमते देखा है ।
 हाँ समय बदलते देखा है ।
 खुशियों को छिनते देखा है ।
 खुदगर्जी का मंजर देखा है ।
 अपनों को बदलते देखा है ।
 हाँ समय बदलते देखा है ।
 नही कोई दस्तूर जहां , 
  ऐसा दिल भी देखा है । 
 नजरों का वो मंजर देखा है ।
 उतरता पीठ में खंजर देखा है ।
 हाँ समय बदलते देखा है ।
    ....
 उड़ना चाहो आप जो, पँख दियो फैलाए ।
पँख नही हों उधार के, पँख अपने लगाए । 
 ....
 जीत है कभी हार है ।
 जिंदगी एक श्रृंगार है ।
 बंधी प्रीत की डोर से,
 यह नही प्रतिकार है ।
   ..... 
 ज़िंदगी जब भी तेरा ख्याल आता है ।
 यूँ अहसास बनकर तू पास आता है।
 जीता हूँ यूँ कुछ पल जिंदगी के मैं ,
  जिंदगी कभी तुझे मेरा ख्याल आता है ।
 .... 
शिकायतें
कोई खरीदता ही नहीं 
 सोचा मुफ्त में दे दूँ इन्हें
 मुफ़्त में लेता नहीं कोई 
 सहेजता हूँ अब खुद ही इन्हें।
   .... 
 मिलता नहीं हमें हम सा कोई ,
 यह बेदर्द दुनियाँ ज़ालिम बड़ी है।
 ....
शाश्वत सत्य यही,
विधि विधान यही ।
 मिलता मान सम्मान,
 होता अपमान यहीं।
  इस काव्य विधा के मधुवन में,
 असल नक़ल की पहचान नही।
 ...
 संत चले अब सत्ता पथ पर।
ऊँट बैठे जाने किस करवट।।
  ...
 विषय है शोध का,स्वर खो रहा विरोध  का।
 पुतला था ठोस सा,हो रहा क्यों मोम सा ।
.....
 इतिहास लिखें न हम कल का।
 इतिहास लिखें हम कल का।
 राह बदल दें हम सरिता की,
  सत्य लिखें हम पल पल का।
  ...
 सत्य की सुगंध हो, होंसले बुलंद हों।
 जीत लें असत्य सभी,इतना सा द्वंद हो ।
 ....
 सीखता है वो अपनी हर भूल से।
 खिलता फूल मिट्टी की धूल से।

  .... "निश्चल" विवेक दुबे ....©

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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