रविवार, 31 दिसंबर 2017

सबक जिंदगी के

..... सबक ज़िन्दगी के...

जो छूट जाता है ।
वो सिखाती है ।
जिन्दगी ......
किताबो के नहीं ।
कुछ किस्मत के ।
कुछ कर्मो के ।
सबक पढ़ाती है ।
जिन्दगी ....

 अभी कुछ घंटो की दूरी है।
 इस वर्ष की संध्या नही डूबी है।
...विवेक दुबे "निश्चल" ...

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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