आँचल की वो छाँव घनी थी।
दुनियाँ में पहचान मिली थी ।
छुप जाता तब तब उस आँचल में,
जब जब दुनियाँ अंजान लगी थी।
हो जाता "निश्चल" निश्चिन्त सुरक्षित ।
उस ममता के आँचल में चैन बड़ी थी।
उस आँचल की छोटी सी परिधि से ,
इस दुनियाँ की परिधि बड़ी नही थी।
माँ पर कोई काव्य क्या गढ़े ।
माँ तो हर काव्य से परे परे ।
माँ एक महाकाव्य है खुद ,
कर नमन माँ चरण शीश धरे ।
....
दे दे सब निःस्वार्थ भाव से ।
कर जोड़कर आभार भाव से ।
पा जाएगा अर्थ प्यार का तू,
इस सकल जगत सँसार से ।
....
माँगा वो प्यार नही ।
पाया वो अधिकार नही ।
रिश्ते हैं निःस्वार्थ भाव के,
रिश्ते कोई व्यापार नही ।
...
तूने रचा उस रचयिता को ।
जिसने रचा सारा सँसार ।
सबसे पहले माँ आई ,
और रच गया सँसार ।
.
....."निश्चल" विवेक दुबे...
दुनियाँ में पहचान मिली थी ।
छुप जाता तब तब उस आँचल में,
जब जब दुनियाँ अंजान लगी थी।
हो जाता "निश्चल" निश्चिन्त सुरक्षित ।
उस ममता के आँचल में चैन बड़ी थी।
उस आँचल की छोटी सी परिधि से ,
इस दुनियाँ की परिधि बड़ी नही थी।
माँ पर कोई काव्य क्या गढ़े ।
माँ तो हर काव्य से परे परे ।
माँ एक महाकाव्य है खुद ,
कर नमन माँ चरण शीश धरे ।
....
दे दे सब निःस्वार्थ भाव से ।
कर जोड़कर आभार भाव से ।
पा जाएगा अर्थ प्यार का तू,
इस सकल जगत सँसार से ।
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माँगा वो प्यार नही ।
पाया वो अधिकार नही ।
रिश्ते हैं निःस्वार्थ भाव के,
रिश्ते कोई व्यापार नही ।
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तूने रचा उस रचयिता को ।
जिसने रचा सारा सँसार ।
सबसे पहले माँ आई ,
और रच गया सँसार ।
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....."निश्चल" विवेक दुबे...
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