बुधवार, 2 मई 2018

जीवन की खातिर

पाकर जिसने मुझको ,
 खुद को खोया था ।
जीवन की खातिर ,
 जीवन को खोया था ।

 सजल नयन थे कितने ,
 दृग कण भी रोया था ।
 मुस्कान भरे अधरों पर ,
 शब्द शब्द में खोया था ।

 जीवन की खातिर ,...

 छोड़ चले पग चिन्ह ही अपने ,
 चिन्हों ने कदमों को खोया था ।
 लिपटी दृष्टि बार बार यादों में ,
  वादों ने यादों को खोया था ।

 जीवन की खातिर ,...

 छूटा वो आँचल आँगन भी ,
 जिस आँचल ने उसे संजोया था ।
 बातों को अब आँगन की ,
 उसने यादों में बोया था ।

 पाकर जिसने मुझको ,
 खुद को भी खोया था ।
 जीवन की खातिर ...
.... विवेक दुबे "निश्चल"@...

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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