कुछ शेर मेरे ऐसे भी रह गए ।
किसी नज्म में जो कहे न गए ।
वो अश्कों में भींग कर मेरे ,
वो लफ्ज़ लफ्ज़ घुलते गए ।
अहसासों की खुशबुएँ थीं जिनमें ,
अहसासों के वो फूल झड़ते गए ।
जो जहां सर्द हुए थे अल्फ़ाज़ मेरे ,
वो अल्फ़ाज़ वहां से पिघलते गए ।
उजाले थे बहुत शहर में मेरे ,
अंधेरे रोशनियों को निगलते गए ।
रहा मलाल"निश्चल" को इतना,
वो शेर आज भी मेरे ही रहे ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
किसी नज्म में जो कहे न गए ।
वो अश्कों में भींग कर मेरे ,
वो लफ्ज़ लफ्ज़ घुलते गए ।
अहसासों की खुशबुएँ थीं जिनमें ,
अहसासों के वो फूल झड़ते गए ।
जो जहां सर्द हुए थे अल्फ़ाज़ मेरे ,
वो अल्फ़ाज़ वहां से पिघलते गए ।
उजाले थे बहुत शहर में मेरे ,
अंधेरे रोशनियों को निगलते गए ।
रहा मलाल"निश्चल" को इतना,
वो शेर आज भी मेरे ही रहे ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
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